भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र की प्राप्ति.


शिवमहापुराण के कोटिरुद्रसंहिता के अनुसार भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र, भगवान शंकर ने जगत कल्याण के लिए दिया था|

एक बार जब दैत्यों के अत्याचार बहुत बढ़ गए तब सभी देवता श्रीहरि विष्णुजी के पास गये और दैत्यों के अत्याचार से मुक्त करने की गुहार करने लगे| 


भगवान विष्णु ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की विधिपूर्वक आराधना आरम्भ की| वे हजार नामों से शिव की स्तुति करने लगे और प्रत्येक नाम पर एक कमल पुष्प भगवान शिव को चढ़ाते जाते थे।

भगवान शंकर ने  परीक्षा के लिए उनके द्वारा लाए गये एक हजार कमल में से एक कमल का फूल माया से गायब कर  दिया| 


विष्णुजी  को यह पता न चल सका|

अंत में एक फूल कम पाकर भगवान विष्णुजी सोच में पड गए|

विष्णुजी ने एक फूल की पूर्ति के लिए यह मान्यता के वशीभूत होकर  कि उन्हें शास्त्र  "कमल-नयन" भी कहते हैं, अपना एक नेत्र निकालकर शिव को अर्पित कर दिया| विष्णु की भक्ति देखकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए और उनके समक्ष प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा।

विष्णुजी ने दैत्यों के संहार हेतु अजेय शस्त्र का वरदान मांगा| 


भगवान शंकर ने विष्णुजी  को सुदर्शन-चक्र प्रदान किया| 

विष्णुजी  ने उस चक्र से दैत्यों का संहार कर दिया| 

इस प्रकार देवताओं को दैत्यों से मुक्ति मिली|

और सुदर्शन चक्र श्री विष्णुजी के स्वरूप के साथ सदैव के लिए जुड़ गया।

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