नवार्ण मन्त्र विधि.



विनियोग :

ॐ अस्य श्रीनवार्णमन्त्रस्य ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दासि, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः। 
 
न्यास :

१. ऋष्यादिन्यास :

ब्रम्हविष्णुरुद्रऋषिभ्यो नमः शिरसि।
गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दोभ्यो नमः मुखे।
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताभ्यो नमः हृदि ।
ऐं बीजाय नमः गुह्ये ।
ह्रीं शक्तये नमः पादयो ।
क्लीं कीलकाय नमः नाभौ ।

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे :- इस मूल मन्त्र से हाथ धोकर करन्यास करें।

२. करन्यास:


ॐ ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः । (दोनों हाथों की तर्जनी अँगुलियों से अंगूठे के उद्गम स्थल को स्पर्श करें) 

ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः । (दोनों अंगूठों से तर्जनी अँगुलियों का स्पर्श करें)

ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नमः । (दोनों अंगूठों से मध्यमा अँगुलियों का स्पर्श करें)

ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां नमः । (दोनों अंगूठों से अनामिका अँगुलियों का स्पर्श करें)

ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नमः । (दोनों अंगूठों से कनिष्ठका "छोटी अँगुलियों" का स्पर्श करें)

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । (हथेलियों और उनके पृष्ठ भाग का स्पर्श)


३. हृदयादिन्यास :

ॐ ऐं हृदयाय नमः । (दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों से ह्रदय का स्पर्श)

ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा । (शिर का स्पर्श)

ॐ क्लीं शिखायै वषट् । (शिखा का स्पर्श)

ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम् । (दाहिने हाथ की अँगुलियों से बाएं कंधे एवं बाएं हाथ की अँगुलियों से दायें कंधे का स्पर्श)

ॐ विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट् । (दाहिने हाथ की उँगलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और मस्तक में भौंहों के मध्यभाग का स्पर्श)



४. वर्णन्यास :


(इस न्यास को करने से साधक सभी प्रकार के रोगों से मुक्त हो जाता है)


ॐ ऐं नमः शिखायाम् 
ॐ ह्रीं नमः दक्षिणनेत्रे 
ॐ क्लीं नमः वामनेत्रे 
ॐ चां नमः दक्षिणकर्णे 
ॐ मुं नमः वामकर्णे 
ॐ डां नमः दक्षिणनासापुटे 
ॐ यैं नमः वामनासापुटे 
ॐ विं नमः मुखे 
ॐ च्चें नमः गुह्ये 


इस प्रकार न्यास करके मूलमंत्र से आठ बार व्यापक न्यास (दोनों हाथों से शिखा से लेकर पैर तक सभी अंगों का) स्पर्श करें।


(अब प्रत्येक दिशा में चुटकी बजाते हुए निम्न मन्त्रों के साथ दिशान्यास करें:)५. दिशान्यास: 


ॐ ऐं प्राच्यै नमः 
ॐ ऐं आग्नेय्यै नमः 
ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः 
ॐ ह्रीं नैऋत्यै नमः 
ॐ क्लीं प्रतीच्यै नमः 
ॐ क्लीं वायव्यै नमः 
ॐ चामुण्डायै उदीच्यै नमः 
ॐ चामुण्डायै ऐशान्यै नमः 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे उर्ध्वायै नमः 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे भूम्यै नमः 


अन्य न्यास :- यदि साधक चाहे तो इतने ही न्यास करके नवार्ण मन्त्र का जप आरम्भ करे किन्तु यदि उसे और भी न्यास करने हों तो वह भी करके ही मूल मन्त्र जप आरम्भ करे।
यथा :-


६. सारस्वतन्यास :


(इस न्यास को करने से साधक की जड़ता समाप्त हो जाती है)

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः हृदयाय नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिरसे स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिखायै वषट् ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः कवचाय हुम् ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः अस्त्राय फट ।


७. मातृकागणन्यास :

(इस न्यास को करने से साधक त्रैलोक्य विजयी होता है)

ह्रीं ब्राम्ही पूर्वतः माँ पातु 
ह्रीं माहेश्वरी आग्नेयां माँ पातु 
ह्रीं कौमारी दक्षिणे माँ पातु 
ह्रीं वैष्णवी नैऋत्ये माँ पातु 
ह्रीं वाराही पश्चिमे माँ पातु 
ह्रीं इन्द्राणी वायव्ये माँ पातु 
ह्रीं चामुण्डे उत्तरे माँ पातु 
ह्रीं महालक्ष्म्यै ऐशान्यै माँ पातु 
ह्रीं व्योमेश्वरी उर्ध्व माँ पातु 
ह्रीं सप्तद्वीपेश्वरी भूमौ माँ पातु 
ह्रीं कामेश्वरी पतालौ माँ पातु 

८. षड्देविन्यास 


(इस न्यास को करने से वृद्धावस्था एवं मृत्यु भय से मुक्ति मिलती है)


कमलाकुशमण्डिता नंदजा पूर्वांग मे पातु 
खडगपात्रकरा रक्तदन्तिका दक्षिणाङ्ग मे पातु 
पुष्पपल्लवसंयुता शाकम्भरी प्रष्ठांग मे पातु 
धनुर्वाणकरा दुर्गा वामांग मे पातु 
शिरःपात्रकराभीमा मस्तकादि चरणान्तं मे पातु 
चित्रकान्तिभूत भ्रामरी पादादि मस्तकान्तम् मे पातु 

९. ब्रह्मादिन्यास 

(इस न्यास को करने से साधक के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं)

ॐ सनातनः ब्रह्मा पाददीनाभिपर्यन्त मा पातु ।
ॐ जनार्दनः नाभिर्विशुद्धिपर्यन्तं मा पातु ।
ॐ रुद्रस्त्रिलोचनः विशुद्धेर्ब्रह्मरन्ध्रांतं मा पातु ।
ॐ हंसः पदद्वयं मा पातु ।
ॐ वैनतेयः करद्वयं मा पातु ।
ॐ वृषभः चक्षुषी मा पातु ।
ॐ गजाननः सर्वाङ्गानि मा पातु ।
ॐ आनंदमयो हरिः परापरौ देहभागौ मा पातु ।

१०. महालक्ष्मयादिन्यास :

(इस न्यास को करने से धन-धान्य के साथ-साथ सद्गति की प्राप्ति होती है)

ॐ अष्टादशभुजान्विता महालक्ष्मी मध्यं मे पातु 
ॐ अष्टभुजोर्विता सरस्वती उर्ध्वे मे पातु 
ॐ दशभुजसमन्विता महाकाली अधः मे पातु 
ॐ सिंहो हस्त द्वयं मे पातु 
ॐ परंहंसो अक्षियुग्मं मे पातु 
ॐ दिव्यं महिषमारूढो यमः पादयुग्मं मे पातु 
ॐ चण्डिकायुक्तो महेशः सर्वाङ्गानी मे पातु 

११. बीजमन्त्रन्यास :

ॐ ऐं हृदयाय नमः । (दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों से ह्रदय का स्पर्श)
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा । (शिर का स्पर्श)
ॐ क्लीं शिखायै वषट् । (शिखा का स्पर्श)
ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम् । (दाहिने हाथ की अँगुलियों से बाएं कंधे एवं बाएं हाथ की अँगुलियों से दायें कंधे का स्पर्श)
ॐ विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट् । (दाहिने हाथ की उँगलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और मस्तक में भौंहों के मध्यभाग का स्पर्श)
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट । (यह मन्त्र पढ़कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से बायीं ओर से पीछे ले जाकर दाहिनी ओर से आगे लाकर तर्जनी और मध्यमा अँगुलियों से बाएं हाथ की हथेली पर ताली बजाएं)



१२. विलोमबीजन्यास :

(इस न्यास को समस्त दुःखहर्ता के नाम से भी जाना जाता है)


ॐ च्चें नमः गुह्ये 
ॐ विं नमः मुखे 
ॐ यैं नमः वामनासापुटे 
ॐ डां नमः दक्षिणनासापुटे 
ॐ मुं नमः वामकर्णे 
ॐ चां नमः दक्षिणकर्णे 
ॐ क्लीं नमः वामनेत्रे 
ॐ ह्रीं नमः दक्षिणनेत्रे 
ॐ ऐं नमः शिखायाम् 

१३. मन्त्रव्याप्तिन्यास:


कोई टिप्पणी नहीं: