सत्य बात यही है कि इस प्रकार सदा-सदा के लिये परमात्मा और जीव की स्थिति को सर्वथा भिन्न मानना न तो तर्क, न ही बुद्धिसंगत जान पड़ता है और न वह कोई अधिक अच्छी स्थिति ही कही जा सकती है। आधुनिक विज्ञान, जो कुछ-वर्ष पहले ईश्वर के अस्तित्व से सर्वथा इनकार करता था, अब उसकी सत्ता को मानने का उपक्रम कर रहा है, पर उसमें द्वैत की तो गुंजाइश ही नहीं है। वह खोज करते-करते यहाँ तक पहुँचा है कि इस विश्व का अंतिम मूल तत्व एक ही है - जड़, चैतन्य सबका उसी में से विकास हुआ है और अंत में उसी में लय हो जायगा। इसलिए मनुष्य ही क्यों प्रत्येक प्राणी और पदार्थ ईश्वर का ही अंश है, जो एक दिन उसमें अवश्य मिल जायगा। यह सिद्धाँत पालन करने में ही नहीं समझने में भी कठिन है और इसलिए साधारण मनुष्य जल्दी इस पर विश्वास नहीं कर सकते। जिसके जीवन में युग-युग से दुर्बलता घुस गई है, गुलामी ने दिमाग में डेरा डाल रखा है, वह एकाएक कैसे इस बात पर विश्वास कर सकता है कि वह सर्वशक्तिमान सत्ता का भाई-बन्धु है|
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