सीता के रूप में जन्मी कन्या के पार्श्व में प्रमुखत: दो कहानियाँ प्रचलित हैं| वे निम्नानुसार हैं|-
1- अद्भुत रामायण में उल्लेख है कि, गृत्स्मद नामक ब्राह्मण, लक्ष्मीजी को पुत्री रूप मे पाने की कामना से, प्रतिदिन एक कलश मे कुश के अग्र-भाग से मंत्रोच्चारण के साथ दूध की बूंदें डालता था। एक दिन जब ब्राह्मण कहीं बाहर गया था तब रावण इनकी कुटिया में आया और यहां मौजूद ऋषियों को मारकर उनका रक्त कलश में भर लिया। यह कलश लाकर रावण ने मंदोदरी को सौंप दिया और कहा कि यह तेज विष हैं इसे छुपाकर रख दो।
मंदोदरी रावण की उपेक्षा से दुःखी थी। एक दिन जब रावण बाहर गया था तब मौका देखकर मंदोदरी ने कलश में रखा रक्त पी लिया। इसके पीने से मंदोदरी गर्भवती हो गयी।
लोक लाज के डर से मंदोदरी ने अपनी पुत्री को उसी कलश में रखकर, उस स्थान पर छुपा आई, जहां से जनक ने उसे प्राप्त किया था।
मंदोदरी की पुत्री वाली इस कहानी का स्वरूप लोक रंजन कथानक में अनेक प्रकार से प्रचलित हैं|
2- वेदवती..लंका के राजा रावण ने हिमालय का भ्रमण करते समय एक कन्या को देखा। उसका नाम वेदवती था। उसे देखते ही रावण मुग्ध हो गया। वह कन्या के निकट गया और अभी तक उसके अविवाहित रहने का कारण पूछा।
वेदवती ने बताया कि उसके पिता, उसका विवाह विष्णुजी से करना चाहते थे परन्तु एक राक्षस ने मेरे पिता का वध कर दिया क्योकि वह मुझ पर मोहित था| पति के वियोग में माता भी मर गई। पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए मैंने तपस्या का मार्ग अपनाया है।
रावण ने पहिले तो कन्या को फुसलाने की कोशिश की परन्तु उसके न मानने पर वेदवती के केश पकड़ लिए, वैसे ही रावण के द्वारा पकडे गये बालों को काटकर वेदमती ने अग्नि कुंड मे कूद कर अपनी जान दे दी। यही वेदवती अगले जन्म में कन्या रूप में राजा जनक को भूमि से प्राप्त हुई थी और रावण के विनाश का कारण बनी|
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को बिहार स्थित सीममढ़ी के पुनौरा ग्राम में दुर्भिक्ष के कारण वर्षा हेतु टोटके के लिए राजा का खेत में हल चलाने की अवधि में, हल में लगी रहने वाली लोहे की नोक जिसे “सीत” कहते हैं, का एक पात्र से टकराने पर, उस पात्र से कन्या रत्न की प्राप्ति राजा जनक को हुई थी| इसलिए कन्या का नाम “सीता” ही प्रचलित हुआ| इन्हें भूमिपुत्री या भूसुता भी कहते हैं| पृथ्वी से जन्म लेकर अंत में पृथ्वी में ही सीताजी समा भी गई थी|
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