साष्टांग / दंडवत.



साष्टांग / दंडवत

साष्टांग में ‘स’ का अर्थ हैं, सहित और ‘आष्टांग’ का अर्थ हैं; आठ-अंग| आठ अंगो सहित दंडवत होने को “साष्टांग” कहते हैं| साष्टांग केवल मंदिर में देवी-देवताओं को ही नहीं किया जाता बल्कि ऋषि-मुनि, बड़े बुजुर्ग, ज्ञानी और तपस्वी को भी किया जाता हैं|

साष्टांग केवल पुरुष ही करते हैं| महिलाएं, देवताओं के समक्ष केवल सिर झुका सकती हैं, इसके पीछे मातृत्व-शक्ति की महानता ही प्रमुख कारण हैं|

साष्टांग को दंडवत भी कहते हैं| जब हम खड़े होते हैं, तो हमें अपने धन-बल पर घमंड हो सकता हैं लेकिन हम डंडे की भांति लेटकर यानि दंडवत हो जाते हैं, तो हमारा अभिमान या घमंड गल जाता हैं| साष्टांग करके हम अपने को पूरी तरह समर्पित कर देते हैं| सारे दुखों का शमन, साष्टांग प्रणाम से हो जाता हैं| तपस्वियों, ज्ञानियों या गुरुजनों को साष्टांग करने पर आयु, विद्या, यश और बल, बढ़ जाता हैं| देवताओं को साष्टांग करने पर दुःख का शमन होता हैं, और उद्देश्य की प्राप्ति होती हैं| स्वत: को समर्पित करना साष्टांग कहलाता हैं| साष्टांग में आठ-अंग पृथ्वी को स्पर्श करते हैं| ये हैं-हाथ, ललाट, नाक्, ठुड्डी, हृदय, उदर, घुटना और चरण या पदमूल|

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