चोर और राजा.



चोर और राजा.            (राजस्थानी लोककथा)
                                                                  

 
एक चोर था। वह बडा ही चतुर था। लोगों का कहना था कि वह आदमी की आंखों का काजल तक उडा सकता था। एक दिन उस चोर ने सोचा कि जब-तक वह राजधानी में नहीं जायगा और अपना करतब नहीं दिखायगा, तब-तक चोरों के बीच उसकी धाक नहीं जमेगी। यह सोचकर वह राजधानी की ओर रवाना हुआ और वहां पहुंचकर, उसने यह देखने के लिए नगर का चक्कर लगाया कि कहां क्या कर सकता है।

उसने तय किया कि  राजा के महल से अपना काम शुरू करेगा। राजा ने रात-दिन महल की रखवाली के लिए बहुत से सिपाही तैनात कर रखे थे। जिसमें परिंदा भी नहीं घुस सकता था। महल में एक बहुत बडी घडीं लगी थी, जो दिन रात का समय बताने के लिए घंटे बजाती रहती थी।

चोर ने लोहे की कुछ कीलें इकठटी कीं और जब रात को घडी ने बारह बजाये तो घंटे की हर आवाज के साथ, वह महल की दीवार में एक-एक कील ठोकता गया। इस तरह बिना शोर किये उसने दीवार में बारह कीलें लगा दीं, फिर उन्हें पकड पकड कर, वह ऊपर चढ गया और महल में दाखिल हो गया। इसके बाद वह खजाने में गया और वहां से बहुत से हीरे चुरा लाया।

अगले दिन जब चोरी का पता लगा तो मंत्रियों ने राजा को इसकी खबर दी। राजा बडा हैरान और नाराज हुआ। उसने मंत्रियों को आज्ञा दी कि शहर की सडकों पर गश्त करने के लिए सिपाहियों की संख्या दूनी कर दी जाय और अगर रात के समय किसी को भी घूमते हुए पाया जाय तो उसे चोर समझकर गिरफतार कर लिया जाय।

जिस समय दरबार में यह ऐलान हो रहा था, भेष बदलकर, वह  चोर भी मौजूद था। उसे सारी योजना का पता चल गया। उसे फौरन उसे यह  भी मालूम हो गया  कि कौन से छब्बीस सिपाही शहर में गश्त के लिए चुने गये हैं। वह अपने  घर गया और साधु का बाना धारण करके उन छब्बीसों सिपाहियों की बीवियों से जाकर मिला। उनमें से हरेक इस बात के लिए उत्सुक थी कि उनका  पति ही चोर को पकडे ओर राजा से इनाम ले।

  हर एक को चोर ने  उनका हाथ देख देखकर बताया कि "वह रात उसके लिए बडी शुभ है। उसके  पति की पोशाक में चोर उसके घर आयेगा; लेकिन, देखो, चोर को अपने घर के अंदर मत आने देना, नहीं तो वह तुम्हें दबा लेगा। घर के सारे दरवाजे बंद कर लेना और भले ही वह पति की आवाज में बोलता सुनाई दे, उसके ऊपर जलता हुआ, कोयला फेंकना। इसका नतीजा यह होगा कि चोर पकड में आ जायगा।"

सारी स्त्रियां रात को चोर के आगमन के लिए तैयार हो गईं। यह बात उन सबने अपने पतियों को नहीं बताई।  सबके पति  गश्त पर चले गये और सवेरे चार बजे तक पहरा देते रहे। हालांकि अभी अंधेरा था, लेकिन उन्हें उस समय तक इधर उधर कोई भी दिखाई नहीं दिया तो उन्होंने सोचा कि अब चोर नहीं आयगा, यह सोचकर उन्होंने अपने घर चले जाने का फैसला किया। ज्योंही वे घर पहुंचे और दरवाजा खोलने के लिए आवाज लगाई, स्त्रियों को संदेह हुआ और उन्होंने चोर की बताई कार्रवाई शुरू कर दी।

फल यह  हुआ कि सिपाही जल गये ओर बडी मुश्किल से अपनी स्त्रियों को विश्वास दिला पाये कि वे ही उनके असली पति हैं और उनके लिए दरवाजा खोल दिया जाय। सारे पतियों के जल जाने के कारण उन्हें अस्पताल ले जाया गया। दूसरे दिन राजा दरबार में आया तो उसे सारा हाल सुनाया गया। सुनकर राजा बहुत चिंतित हुआ और उसने कोतवाल को आदेश दिया कि वह स्वयं जाकर चोर पकड़े।

उस रात कोतवाल ने  शहर का पहरा देना शुरू किया। जब वह एक गली में जा रहा रहा था, तब उसे एक छाया कहीं जाते हुए दिखा| कौन हो- उसने आवाज लगाई|  चोर ने जवाब दिया, ‘मैं चोर हूं।″ कोतवाल समझा कि उसके साथ मजाक कर रहा है। उसने कहा, ″मजाक छाड़ो ओर अगर तुम चोर हो तो मेरे साथ आओ। मैं तुम्हें काठ में डाल दूंगा।″ चोर बाला, ″ठीक है। इससे मेरा क्या बिगड़ेगा!″ और वह कोतवाल के साथ काठ डालने की जगह पर पहुंचा।

वहां जाकर चोर ने कहा, ″कोतवाल साहब, इस काठ को आप इस्तेमाल कैसे किया करते हैं, मेहरबानी करके मुझे समझा दीजिए।″ कोतवाल ने कहा, तुम्हारा क्या भरोसा! मैं तुम्हें बताऊं और तुम भाग जाओं तो ?″ चोर बोला, ″ बिना हीला-हवाले के मैंने अपने को आपके हवाले कर दिया है। मैं भाग क्यों जाऊंगा?″ कोतवाल उसे यह दिखाने के लिए राजी हो गया कि काठ कैसे डाला जाता है। ज्यों ही उसने अपने हाथ-पैर उसमें डाले कि चोर ने झट चाबी घुमाकर काठ का ताला बंद कर दिया और कोतवाल को राम-राम करके चल दिया।

जाड़े की रात थी। दिन निकलते-निकलते कोतवाल मारे सर्दी के अधमरा हो गया। सवेरे जब सिपाही बाहर आने लगे तो उन्होंने देखा कि कोतवाल तो काठ में फंसे पड़े हैं। उन्होंने, उनको  निकाला और अस्पताल ले गये।

अगले दिन जब दरबार लगा तो राजा को रात का सारा किस्सा सुनाया गया। राजा इतना हैरान हुआ कि उसने अब  रात को चोर की निगरानी स्वयं करने का निश्चय किया। चोर उस समय दरबार में मौजूद था और सारी बातों सुन रहा था। रात होने पर उसने साधु का भेष बनाया और नगर के सिरे पर एक पेड़ के नीचे धूनी जलाकर बैठ गया।

राजा ने गश्त शुरू की और दो बार साधु के सामने से गुजरा। तीसरी बार जब वह उधर आया तो उसने साधु से पूछा कि, ″क्या इधर से किसी अजनबी आदमी को जाते उसने देखा है?″ साधु ने जवाब दिया कि "वह तो अपने ध्यान में लगा था, अगर उसके पास से कोई निकला भी होगा तो उसे पता नहीं। यदि आप चाहें तो मेरे पास बैठ जाइए और देखते रहिए कि कोई आता-जाता है या नहीं।″ यह सुनकर राजा के दिमाग में एक बात आई और उसने फौरन तय किया कि साधु को अपनी पोशाक पहनाकर शहर का चक्कर लगाने को कहे  और राजा, साधु के कपड़े पहनकर वहीं धूनी के पास बैठकर आने जाने वाले पर निगाह रखे।

  बहुत समझाने के बाद आखिर में वह चोर जो साधू बना बैठा था, राजा की बात मानने को राजी हो गया और  फिर  आपस में कपड़े बदल लिये। चोर, तत्काल राजा के घोड़े पर सवार होकर महल में पहुंचा ओर राजा के सोने के कमरे में जाकर आराम से सो गया, बेचारा राजा, साधु बना चोर को पकड़ने के लिए इंतजार करता रहा। सवेरे के कोई चार बजने आये। राजा ने देखा कि न तो साधु लौटा और कोई आदमी या चोर उस रास्ते से गुजरा, तो उसने महल में लौट जाने का निश्चय किया; लेकिन जब वह महल के फाटक पर पहुंचा तो संतरियों ने सोचा, राजा तो पहले ही आ चुका है, हो न हो यह चोर है, जो राजा बनकर महल में घुसना चाहता है। उन्होंने राजा को पकड़ लिया और काल कोठरी में डाल दिया। राजा ने शोर मचाया, पर किसी ने भी उसकी बात न सुनी।

दिन का उजाला होने पर काल कोठरी का पहरा देने वाले संतरी ने राजा का चेहरा पहचान लिया ओर मारे डर के थरथर कांपने लगा। वह राजा के पैरों पर गिर पड़ा। राजा ने सारे सिपाहियों को बुलाया और महल में गया। उधर चोर, जो रात भर राजा के रुप में महल में सोया था, सूरज की पहली किरण फूटते ही, राजा की पोशाक में और उसी के घोड़े पर बैठकर रफूचक्कर हो गया।

अगले दिन जब राजा, अपने दरबार में पहुंचा तो बहुत ही हताश था। उसने ऐलान किया कि अगर चोर उसके सामने उपस्थित हो  जायेगा तो उसे माफ कर दिया जायगा और उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जायेगी, बल्कि उसकी चतुराई के लिए उसे इनाम भी मिलेगा। चोर वहां मौजूद था ही, फौरन राजा के सामने आ गया और   बोला, "महाराज, मैं ही वह अपराधी हूं।″ इसके सबूत में उसने राजा के महल से जो कुछ चुराया था, वह सब सामने रख दिया, साथ ही राजा की पोशाक और उसका घोड़ा भी। राजा ने उसे गांव इनाम में दिये और वादा कराया कि वह आगे चोरी करना छोड़ देगा। इसके बाद से चोर खूब आनन्द से रहने लगा।

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