तीर्थ यात्रा
में
ना करें-32
अपराध.
मनुष्य के जीवन में तीर्थ यात्रा का विशेष महत्व है। ईश्वरीय आराधना इया भी यह एक अंग हैं, इसलिये इसमें में शास्त्र के नियम लागू होते हैं। ऐसा भी उल्लिखित हैं कि तीर्थ यात्रा में हुए दुष्कर्म का दंड सामान्य स्तिथि से चौगुना होता हैं। शास्त्र में ऐसे ३२ कर्म बताये गए हैं, जिन्हें नहीं करना चाहिए। वे हैं...
1. सवारी पर चढ़कर अथवा पैरों में खड़ाऊ (पद-रक्षक) पहनकर भगवान के मंदिर में जाना।
2. रथयात्रा, जन्माष्टमी आदि उत्सवों का न करना या उनके दर्शन न करना।
3. श्रीमूर्ति के दर्शन करके प्रणाम न करना।
4. अशौच-अवस्था में दर्शन करना।
5. एक हाथ से प्रणाम करना।
6. परिक्रमा करते समय भगवान के सामने आकर कुछ देर न रुककर, फिर परिक्रमा करना अथवा केवल सामने ही परिक्रमा करते रहना।
7. भगवान के श्रीविग्रह के सामने पैर फैला कर बैठना।
8. दोनों घुटनों को ऊंचा करके उनको हाथों से लपेटकर बैठ जाना।
9. मूर्ति के समक्ष सो जाना।
10. भोजन करना।
11. झूठ बोलना।
12. भगवान के श्रीविग्रह के सामने जोर से बोलना।
13. आपस में बातचीत करना।
14. मूर्ति के सामने चिल्लाना।
15. कलह करना।
16. पीड़ा देना।
17. किसी पर अनुग्रह करना।
18. निष्ठुर वचन बोलना।
19. कम्बल से सारा शरीर ढंक लेना।
20. दूसरों की निंदा करना।
21. दूसरों की स्तुति करना।
22. अश्लील शब्द बोलना।
23. अधोवायु का त्याग करना।
24. शक्ति रहते हुए भी गौण अर्थात सामान्य उपचारों से भगवान की सेवा-पूजा करना।
25. भगवान को निवेदित किए बिना किसी भी वस्तु का खाना-पीना।
26. ऋतु फल खाने से पहले भगवान को न चढ़ाना।
27. किसी शाक या फलादि के अगले भाग को तोड़कर भगवान के व्यंजनादि के लिए देना।
28. भगवान के श्रीविग्रह को पीठ देकर बैठना।
29. भगवान के श्रीविग्रह के सामने दूसरे किसी को भी प्रणाम करना।
30. गुरुदेव की अभ्यर्थना, कुशल-प्रश्न और उनका स्तवन न करना।
31. अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना।
32. किसी भी देवता की निंदा करना।
उपरोक्त निर्देश सामान्य रूप से यात्रा ही नहीं बल्कि मंदिर जाने-आने अथवा घर में स्थापित देव स्थान के भी लिए लागू होते हैं। इसका पालन अनिवार्य रूप से हर देव स्थान में किया जाना चाहिए।
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