कार्तिक पूर्णिमा पर
दान का महत्व.
कार्तिक मास मे दीपक का विशेष महत्व है। कार्तिक मास मे आकाशमंडल का सबसे तेजस्वी ग्रह सूर्य अपनी नीच राशि तुला की ओर गमन करता है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य के इस राशि परिवर्तन से जीवन मे जड़ता तथा अंधकार की वृद्धि होती है। इसीलिये इस पूरे मास दीपक के प्रकाश, जप, दान तथा स्नान का विशेष महत्व रहता है। धर्मशास्त्रों में दीपदान का काफी गुणगान किया गया है और दीपदान से मानव अपने मनवांछित फल को प्राप्त कर सकता है। विभिन्न धर्मग्रंथों में दीपदान का गरिमामयी गुणगान किया गया है।
सूर्यग्रहे कुरुक्षेत्रे नर्मदायां शशिग्रहे ।
तुलादानस्य यत् पुण्यं तदूर्जे दीपदानतः ।।
आशय....कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय और नर्मदा में चन्द्रग्रहण के समय अपने वजन के बराबर स्वर्ण के तुलादान करने का जो पुण्य है वह केवल दीपदान से मिल जाता है।
तेनेष्टं क्रतुभिः सर्वं कृतं तीर्थावगाहनम् ।
दीपदानं कृतं येन कार्तिके केशवाग्रतः ।।
आशय...जो घृत का दीपक जलाकर पुनः तिल के तेल का दीपक जलाता है। उसे अश्वमेध यज्ञ से क्या लेना देना? उस प्राणी ने समस्त यज्ञों को कर लिया, सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान हो गया। जिसने भगवान के आगे कार्तिक मास में दीपक लगाया।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं शुद्धिहीनं जनार्दन।
व्रतं सम्पूर्णतां यातु कार्तिके दीपदानतः ।।
आशय...दीपदान में नियमो, शुद्धता, मंत्रो की गलती भी सर्वथा माफ़ है। जो भगवान के सामने दीपक लगाता है, उसके मन्त्र, क्रिया और शुद्धि रहित व्रत भी पूर्ण हो जाते हैं।
दीपदानं कार्तिके ये दास्यन्ति हरितुष्टिदम् ।
गयायां पिण्डदानेन कृतं न प्रीणनं सुतैः ।।
आशय...दीपदान से गया श्राद्ध एवं पिंडदान का फल प्राप्त होता है। इससे पितर तृप्त होते हैं।
सर्वंसहा वसुमती सहते न त्विदं द्वयम् ।
अकार्यपादघातं च दीपतापस्तथैव च ।।
आशय...भगवान् के समक्ष दीपक भूमि पर कभी न रखें क्योंकि सब कुछ सहने वाली पृथ्वी को अकारण किया गया पदाघात और दीपक का ताप सहन नही होता।
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