देवी पार्वती ने बनवाया स्वत: का महल.



देवी पार्वती ने बनवाया स्वत: का महल.


देवी पार्वती जी का मन हुआ कि उनके पास भी अपना महल होना चाहिए क्योकि सभी देव अपने महलों में रहते है इसलिए देवों के देव महादेव को भी महल में रहना चाहि.| यह सोचकर देवी पार्वती, महादेव से हठ करने लगी कि आपको भी महल में रहना चाहिए और आपका महल सर्वोत्तम और भव्य होना चाहिए.

महादेव ने देवी पार्वती को समझाने का बहुत प्रयत्न किया परन्तु देवी पार्वती ने उनकी एक न सुनी और वह हठ करने लगी कि उन्हें ऐसा महल चाहिए जो तीनों लोकों में कहीं न हो. महादेव ने देवी पार्वती को समझाया कि हम योगी हैं, हम ज्यादा देर महल में नहीं रह पाएंगे. हमारे रहने के नियम-विधान होते हैं. हमारे लिए महल उचित नहीं है.

देवी पार्वती पर भगवान शिव की बातों का कोई असर नहीं हो रहा था. वह अपने हठ पर अड़ी रही. अंत में हारकर भगवान शिव ने विश्वकर्माजी को बुलाया. उन्होंने विश्वकर्माजी को कहा कि वह एक ऐसा महल बनाए जिसकी सुंदरता की बराबरी का महल त्रिभुवन में कहीं न हो और वह महल न तो धरती पर हो न जल में|

भगवान शिव के कहे अनुसार विश्वकर्मा एक ऐसी जगह की खोज करने लगे जो भगवान शिव के कहे अनुसार हो. भ्रमण करते हुए उन्हें एक ऐसी जगह दिखी जो चारों ओर से पानी से ढकी हुई थी. बीच में तीन सुन्दर पहाड़ दिख रहे थे. उस पहाड़ पर तरह-तरह के फूल और वनस्पति थे. (यह लंका थी)

विश्वकर्मा जी ने उस स्थान के बारे में देवी पार्वती को बताया. उस स्थान की सुंदरता के बारे में सुनकर देवी पार्वती बहुत प्रसन्न हुई तथा उन्होंने विश्वकर्माजी को एक विशाल नगर के ही निर्माण का आदेश दे दिया. विश्वकर्मा जी ने अपनी कला का परिचय देते हुए वहां सोने की अद्भुत नगरी बना दी.

सोने का महल बनने के बाद पार्वती जी ने गृह प्रवेश को मुहूर्त निकलवाया. विश्रवा-ऋषि को आचार्य नियुक्त किया गय. सभी देवताओं और ऋषियों को निमंत्रण भेजा गया|. सभी देवताओं ने महल की बहुत प्रशंसा की.

गृहप्रवेश पूजन के बाद महादेवजी ने आचार्य से दक्षिणा का आग्रह किया. महादेवजी ने अपनी माया से विश्रवा के मन में उस नगरी के लिए मोह भर दिया. महादेव की माया के कारण आचार्य ने दक्षिणा में महल ही मांग लिया. महादेवजी ने तत्काल वह महल दक्षिणा में आचार्य को प्रदान कर दिया. पार्वती जी को विश्रवा की इस धृष्टता पर बहुत क्रोध आया. उन्होंने क्रोध में आकर श्राप दे दिया कि तूने महादेवजी की सरलता का लाभ उठाकर मेरे प्रिय महल को हड़प लिया है. महादेव का ही अंश एक दिन उस महल को जलाकर भस्म कर देगा और उसके साथ ही तुम्हारे कुल का विनाश आरंभ हो जाएगा. ऐसा आजकल बहुर से कथावाचक प्रवचन कर रहे हैं.

मूल कथानक के अनुसार विश्रवा से लंका उनके पुत्र कुबेर को मिली लेकिन रावण ने कुबेर को निकाल कर लंका को हड़प लिया. श्राप के कारण शिव के अवतार हनुमानजी ने लंका जलाई और विश्रवा के पुत्र रावण, कुंभकर्ण और कुल का विनाश श्रीरामजी के हाथों हुआ. विभीषण बच गए क्योकि वे पहले ही प्रभि श्रीरामजी की शरण में आ गए थे.

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