होलाष्टक.
इसके पीछे ज्योतिषीय एवं पौराणिक दोनों ही कारण माने जाते हैं.
(एक)
कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग कर दी थी, इससे रुष्ट होकर उन्होंने प्रेम के देवता (कामदेव) को फाल्गुन की अष्टमी तिथि के दिन भस्म कर दिया था. कामदेव की पत्नी रति ने भगवान शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया और कामदेव को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की, जो उन्होंने स्वीकार कर लिया. महादेवजी के इस निर्णय के बाद जन साधारण ने हर्षोल्लास मनाया और होलाष्टक का अंत फाल्गुन पूर्णिमा को हो गया। इसी परंपरा के कारण यह 8 दिन शुभ कार्यों के लिए वर्जित माने जाते हैं.
(दो)
दैत्य हिरणन्कश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान् विष्णुजी का अन्यय भक्त था और उसके पिता दैत्यराज स्वयं की पूजा राज्य में करवाना चाहते थे किन्तु उनका पुत्र प्रहलाद ही इसमें सबसे बड़ा बाधक साबित हो रहा था, अतएव फाल्गुन शुक्ल अष्टमी के दिन प्रह्लाद को बंदी बनाया गया था और लगातार आठ दिन तक उसे यातनाये दी गई. फाल्गुन पूर्णिमा के दिन दैत्यराज की बहिन होलिका जिसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त था, प्रहलाद को जला कर मर डालने के उद्देश्य से, गोद में लेकर चिता में बैठ गई. चिता में आग लगा देने के बाद प्रभु कृपा से चमत्कार हुआ, होलिका तो जल गई और प्रहलाद सुरक्षित रह गया. जिस दिन प्रह्लाद को बंदी बनाया गया था और जिस दिन गोद लेकर होलिका चिता में बैठी थी, की अवधि को “ होलाष्टक” माना जाता हैं. इस अवधि में शुभ कार्य वर्जित होत हैं.
(तीन)
उपरोक्त में से जो भी कारण आपको समुचित लगे, मान लीजिये पर यह आवश्यक हैं कि होलाष्टक की अवधि में शुभ कार्य का स्थगित रखना ही हितकारी हैं.
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