देवी दुर्गाजी का वाहन शेर.
दुर्गाजी का वाहन शेर है. वाहन के रूप में शेर की प्राप्ति कैसे हुई, यह एक रोचक कथा है.पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव तथा देवी पार्वती कैलाश पर्वत में वार्तालाप कर रहे थे. वार्ता में ठिठोली भी होने लगी और | भगवान शिव ने देवी पार्वती को काली कह दिया. यह बात देवी पार्वती को पसंद नहीं आई और नाराज होकर वन में चली गयी. वन में जाकर उन्होंने गोर होने का वरदान पाने के लिए तपस्या शुरू कर दी.
वन में एक भूखा शेर घूम रहा था. देवी माँ को देखकर, वह उन्हें अपना आहार बनाने के बारे में सोचने लगा, परन्तु उन्हें तपस्या में लीन देखकर वह वहीं बैठ गया और तपस्या से उठने का इंतजार करने लगा. देवी पार्वती की तपस्या कई साल तक चली और वह शेर भी इतने समय तक उनके साथ वहीं बैठा रहा. एक दिन देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें गौर वर्ण का वरदान देकर चले गए.
महादेव के कहे अनुसार देवी पार्वती ने गंगा तट पर स्नान किया. स्नान के पश्चात् उनके शरीर से एक सांवली आकृति की देवी कोशिकी प्रकट हुई और पार्वती जी का वर्ण गौरा हो गया. गौरवर्ण हो जाने के कारण पार्वती जी को गौरी के नाम से भी जाना जाता है.
पार्वतीजी ने देखा कि एक शेर वहां बैठा , उन्हें देख रहा ह. | जब देवी पार्वती को पता चला कि यह शेर उनके साथ ही तपस्या में यहां सालों से बैठा रहा है तो माता ने प्रसन्न होकर उसे वरदान स्वरूप अपना वाहन बना लिया.
स्कंद पुराण में उलेखित एक कथा के अनुसार भगवान शिव तथा पार्वती जी के पुत्र कार्तिकेय ने देवासुर संग्राम में दानव तारक और उसके दो भाई सिंहमुखम और सुरापदमन को पराजित किया. सिंहमुखम ने अपनी पराजय पर कार्तिकेय से माफी मांगी जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने उसे शेर बना दिया और मां दुर्गा का वाहन बनने का आशीर्वाद दिया.
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