ऋणहर्ता गणेश स्त्रोत्र एवं महामंत्र.



ऋणहर्ता गणेश स्त्रोत्र एवं महामंत्र.

श्रीकृष्णयामल तंत्र के अंतर्गत दुस्सह दरिद्रता के नाश हेतु माँ पार्वती एवं देवादिदेव महादेव के संवाद मेंऋणहर्ता गणेश स्त्रोत्र एवं महामंत्र”, जो नीचे लिख गया हैं, का उल्लेख आया हैं|  गणेश जी के पंचोपचार पूजन उपरांत एक बार पाठ करने और पाठ के अंत में दिये गये महामंत्र का २७ बार जाप निरंतर,  एक वर्ष तक किये जाने पर दुस्सह दरिद्रता,  चाहे किसी भी प्रकार के दोष से उत्पन्न हुई हो,  का नाश हो जाता हैं और गणेश जी की कृपा प्राप्त होते ही परिवार में सुख-चैन बना रहता हैं|

ऋणहर्ता गणेश स्त्रोत्र एवं महामंत्र.           .[श्रीकृष्णयामल तंत्र के अंतर्गत]

विनियोग
अस्य श्रीऋणहरणकर्तृगणपतिस्त्रोत्रमंत्रस्य सदाशिव ऋषि:, अनुष्टुप् छन्द:, श्रीऋणहरणकर्तृगणपतिर्देवता, ग्लौं बीजम्, : शक्ति:, गों कीलकम्, मम सकलर्णनाशने जपे विनियोग: |

ऋष्यादिन्यास 
सदाशिवर्शये नम:, शिरसि|  
अनुष्टुप्-छन्दसे नम:, मुखे
 श्रीऋणहर्तगणेशदेवतायै नम:, ह्रदि|  
ग्लौं बीजाय नम:, गुह्ये (मूलाधारे)|  
: शक्तये नम:, पादयो:|  
गों कीलकाय नम: सर्वांड़्गे|

करन्यास 
गणेशअड़्गुष्ठाभ्यां नम:|
 ‘ऋणं छिन्धितर्जनीभ्यां नम:|
 ‘वरेण्यम्मध्यमाभ्यां नम:|
 ‘हुम्अनामिकाभ्यां नम:|
 ‘नम:कनिष्ठकाभ्यां नम:
फट्करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:|

हृदयादिन्यास 
गणेशहृदयाय नम:
ऋणं छिन्धिशिरसे स्वाहा|
 ‘वरेण्यम्शिखायै वषट्|
 ‘हुम्कवचाय हुम्|
 ‘नम:नेत्रयाय वौषट्|
 ‘फट्अस्त्राय फट्|

ध्यान
सिन्दूरवर्णं द्विभुजं गणेशं लम्बोदरं पद्मदले निविष्टम्|
ब्रह्मादिदेवै: परिसेव्यमानं सिध्दैर्युतं तं प्रणमामि देवम्||

स्त्रोत्र
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फलसिद्धये|
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु में|| 

त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चितः|
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु में|| 

हिरण्यकश्यपादीनां वधार्थे विष्णुनार्चितः|
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु में||

माहिषस्य वधे देव्या गणनाथ: प्रपूजित:|
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु में|| 

तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित:|
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु में|| 

भास्करेण गणेशस्तु पूजितश्छविसिध्दये|
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु में|| 

शशिना कान्तिसिध्दयर्थं पूजितो गणनायक:|
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु में|| 

पालनाय तपसा विश्वामित्रेण पूजित:|
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु में|| 

इदं त्वणहरं स्त्रोतं तीव्रदारिद्रयनाशनम्|
एकवारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं समाहित||

दारिद्रयं दारुणं त्यक्त्वा कुबेरसमतां ब्रजेत्|
फ़ड़न्तोऽयं महामंत्र: सार्धपञ्चदशाक्षर||

ऋणहर्ता महामंत्र-

गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हूं नम: फट्

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