एक जादूगर बड़े नगर में जाकर सडक पर प्रचार कर रहा था की “भाईओ, आप लोग काम के लिये नौकरों, मुनीम, मुख्त्यारो के विशेष खर्च से तंग आ गये हो तो, मैं एक भूत लाया हूँ जिसकी कीमत केवल पांच सौ रूपये हैं| उसमें गुण ही गुण भरे हैं| एक तो बहुत खाता पीता नहीं, वह डरता भी नहीं, कोई तनखाह भी नहीं लेता साथ ही झाड़ू लगाने से खाता, व्यापर, खेती, कचहरी, रसोई आदि सारा काम अकेला ही कर सकता हैं| एक मिनट सुस्ताता नहीं, बैठता नहीं, सोता नहीं, इत्यादि गुण हैं परन्तु दुर्गुण एक हैं कि आपने उसे कोई काम नहीं बताया तो वह आपकी खोपड़ी खा जायेगा| आपको तंग करेगा, कहेगा “काम बताओ’
यह सुनकर एक सेठ ने विचार कि यह तो बहुत फायदे की बात हैं| अपने तो एक नौकर को पाच सो की साल देते हैं| ऐसे कई नौकर बृथा लगे हैं| अब तो इस एक से ही काम पूरा हो जायेगा| ऐसा सोचकर उस जादूगर को बुलाकर पाच सो रुपया देकर भूत ले लिया| जादूगर ने मय टिपारी सहित भूत दे दिया |
यह सुनकर एक सेठ ने विचार कि यह तो बहुत फायदे की बात हैं| अपने तो एक नौकर को पाच सो की साल देते हैं| ऐसे कई नौकर बृथा लगे हैं| अब तो इस एक से ही काम पूरा हो जायेगा| ऐसा सोचकर उस जादूगर को बुलाकर पाच सो रुपया देकर भूत ले लिया| जादूगर ने मय टिपारी सहित भूत दे दिया |
सेठ जी ने भूत को चिट्टियाँ, बम्बई, कलकत्ता, दूर दूर की पहुचाने को दी| वह सब पंहुचा कर तुरंत आ गया, बोला “काम बताओ”|
सेठ ने रोकड़ खाते का काम दे दिया| उसने थोड़ी देर में सारे काम समाप्त कर , बोला “काम बताओ”
सेठ ने गद्दियाँ साफ कराकर भोजन बनाने का काम दिया| उसने सब करके, सेठ को भोजन भी करा दिया और बोला ‘काम बताओ’
सेठ ने बिस्तर लगवाकर कर कहाँ, दिसावरों से जाकर चिट्टियो के जबाब ले आओ| ऐसा कहकर सेठ सो गये|
दो घंटे में भूत जबाब लेकर वापिस आ गया और सेठ को जगाकर, जबाब सौप कर, बोला ‘काम बताओ’|
सेठ, भूत से परेशान होकर, अपने गुरु जी के घर, उस भूत को ले गये|
गुरु जी के चरण स्पर्श कर , सेठ ने व्यथा वर्णन कर, विनती की, गुरु जी इस भूत से मेरा पीछा छुड़ा दीजिये|
गुरु जी ने भूत से कहा कि क्यों तंग करता हैं?,
तब भूत ने कहा-‘मुझे काम बताते नहीं हैं|’ मैं चेन से नहीं बैठ सकता|
गुरूजी बोले अच्छा तुम हमारे पास रहो, मैं काम बताऊंगा|
भूत बोला अच्छा- आप काम बताइए|
तब गुरु जी ने उसे एक ५० हाथ लम्बा पत्थर का गोल चिकना खम्बा बनाकर लाने को कहा|
आज्ञा पाते ही भूत, चला गया| पहाड़ से वैसा ही खम्बा बनाकर सबेरे लाया फिर गुरु जी से पुछा?
इस खम्बे का क्या करू, तब गुरु जे ने कहा-खम्बे को आंगन में 10 हाथ गड्डा खोदकर खड़ा करो, ४० हाथ उपर रहना चाहिए|
भूत ने तत्काल, वह काम कर दिया और कहा”काम बताओ”|
गुरु जी ने कहा तुम इस खम्बे पर चढो और उतरो| यह अनवरत करते रहो| यदि रुके तो तुम्हारी पिटाई होगी|
यह सुनकर, वह दस घंटे तक लगातार, यह क्रिया करते रहा और अंत में थक कर, बैठ गया और मारे डर के, गुरु जी से प्रार्थना की, “गुरूजी मैं हार गया हूँ, अब आप जितना काम बतायेंगे, उतन ही करूँगा अन्यथा शांत बैठा रहूँगा| इस तरह वह आज्ञाकारी शिष्य बन गया|
यह उदाहरण “मन की गति” को समझने के लिये हैं| हमारा मन इसी भूत की तरह हैं जिसे सकारात्मक और सृजनात्मकत रूप से साधने के लिए निरंतर अभ्यास की आवश्यकता होती हैं| जीवन का मार्ग कंटकापूर्ण हैं| उसमें भी यदा-कदा परामर्श की आवश्यकता पड ही जाती हैं यही कारण हैं, जीवन में गुरु का||
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें