श्रेष्ट कथन. (35)


श्रेष्ट .
01.
जो बातें अभिभावकों की सुनकर, हम चिढ़ जाते थे; अभिभावक बनकर, वहीं कहने लगते हैं।
02.
डूब कर मरने के भय से पानी के किनारे खड़े रहने वाले कभी भी तैरना नहीं सीख पाते। सीखने के लिए तो भय से मुक्त होना ही पड़ेगा।
03.
वस्तुयें अनिष्ट-कारक नहीं होती। अनिष्ट-कारक होती हैं, मनुष्य की सोच। जैसे माचिस की तीली से आग प्रज्वलित कर भोजन बनाया जा सकता हैं और उसी तीली से खड़ी फसल भी जलाई जा सकती हैं।
04.
ज्ञान ऐसा अस्त्र हैं , जिसके माध्यम से विश्व को बदला जा सकता हैं
05.
शिक्षा का अर्थ हैं , जो आप जानते हैं और जो आप नहीं जानते, उनमें अंतर समझ जाना
06.
औपचारिक शिक्षा जीवन यापन योग्य बना देती हैं; किन्तु स्व-शिक्षा सफल बनती हैं
07.
शिक्षा समाज की आत्मा हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है
08.
भावावेश व्यक्तियों का कोई निश्चय नहीं होता, कोई लक्ष्य नहीं होता; क्योकि उनकी मनोवृत्ति डांवाडोल रहती हैं।
09.
गजब की एकता देखी,
लोगो की जमाने में,
जिन्दों को गिराने में, और
मुर्दों को उठाने में।
10.
जब तक लोभी जिन्दा हैं, “ठगभूख से नहीं मर नहीं सकता।
11.
न मेरा एक होगा, न तेरा लाख होगा,
न तारीफ तेरी होगी, न मजाक मेरा होगा,
गुरु न कर इस शाही शरीर का,
मेरा भी खाक होगा, तेरा भी खाक होगी।
12.
जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता हैं और न किसी से आकांक्षा रखता हैं, वह निष्काम कर्मयोगी सन्यासी ही समझने योग्य हैं।
13.
बकरी के पैरों से उडती हुई धूल, गधे द्वारा उड़ाई गई धूल और झाड़ू लगते समय उसकी धूल-ये तीनों पापमय होती हैं। सूपा से फटकते समय की हवा, नखों के अगर भाग का जल और स्नान-वस्त्र की मृजा (धोने के बाद का जल), ये तीनों पूर्व जन्म में किये पुण्य का हरण कर लेते हैं।
14.
घमण्ड से आदमी फूल सकता हैं, फल नहीं सकता।
15.
कलंक से मुक्ति का एक मात्र उपाय पश्चाताप और अपने में आमूल सुधार ही हैं।
16.
सज्जनों की संगती सदा लाभदायक होती हैं।
17.
परामर्श से लाभ उठाना सिर्फ बुध्दिमानों को आता हैं।
18.
स्व-अज्ञानता से अनभिज्ञ होना ज्ञानी की सबसे बड़ी बीमारी हैं।
19.
अनुभव प्राप्ति के लिए बहुत मूल्य चुकाना पड़ता है, पर उससे मिली शिक्षा अनमोल होती हैं।
20.
जब दूसरों की भलाई करना, मनुष्य का स्वभाव बन जाता हैं, तब उसकी स्व-कामना का ह्रास हो जाता हैं।

21.
ज्ञान मुक्त करता हैं, पर ज्ञान का अभिमान नरक में ले जाता हैं।
22.
जब तक मनुष्य को दूसरे की अपेक्षा अपने में विशेषता दिखती है, तब तक वह साधक तो हो सकता है, पर सिद्ध नहीं हो सकता।
23.
अगर रुक रुक कर, हर भौंकने वाले कुत्ते पर पत्थर फेंकोगे तो आप अपने गंतव्य तक पहुचने के लिए खुद बाधा बन जाओगे।

24.
उदास, निराश और हतोत्साहित न होना ही बुध्दिजीवी और कर्मशील की पहचान होती हैं।
25.
स्वार्थ और लाभ ही सबसे बड़ा उत्साहवर्धन करता हैं, पर सराहा तभी जाता हैं, जब वह औचित्यपूर्ण और जनहितकारी कार्यों से जुड़ा हो।
26.
स्वार्थ और अभिमान का त्याग किये बिना, मनुष्य श्रेष्ट नहीं बन सकता।
27.
स्त्री और पुरुष दोनों मूल रूप से संयुक्त (एकमेक) हैं| ईश्वर ने अपने आपको दो खंडो (टुकड़ों) में विभाजित किया| वे ही दो खण्ड परस्पर पति-पत्नी हो गए|
28.
बिना सुने दूसरे का दर्द समझने की क्षमता बस अपनत्व में ही होती है।
29.
इच्छाओं और आवश्यकताओं के भेद को समझकर जीवन में वास्तविकता को उतारें।
30.
घर भरने के लालची, राजनीति में आकर समाज को भ्रष्ट, दुराचारी, चरित्रहीन और देश को खोखला बना रहें हैं। ऐसे लोगो के सहायक न बने।
31.
अनंत की अनुभूति के कई मार्ग हैं। अब यह यात्री की क्षमता पर निर्भर करता है कि वह अपने लिए किस मार्ग को चुने। साधना की पहली सीढी है-उपयुक्त का चुनाव और अनिवार्य तत्व हैं-आस्था।
32.
बिना सुने दूसरे का दर्द समझने की क्षमता बस अपनत्व में ही होती है।
33.
बिना विचारे शीघ्रता से किया जाने वाला निर्णय, स्वार्थ की ओर ही झुकता हैं।
34.
लक्ष्य की कामयाबी में निर्णय और प्रयास ही मुख्य भूमिका निभाते हैं। यदि आप रोजमर्रा की जिंदगी जीते हुये कुछ अलग से करने का निर्णय और प्रयास नहीं करते, तब जीवन स्तर को ऊंचा भी नहीं उठा सकते हैं।
35.
जीव का म्रत्यु से, शरीर का आग से, शक्ति का समय से और संपदा का दुर्गुणों  से, अंत (नष्ट) हो जाता हैं।

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