श्रेष्ट कथन.
01.
दुर्लभता
का अस्तित्व वहीं तक है, जब
तक हम वहां पहुंचते नहीं हैं।
02.
एक जगह पर खडे रहने पर संसार छोटा लगता है और
बढ़ते जाने पर बड़ा होते जाता हैं।
03.
हमेशा
दूसरों पर आश्रित रहना, अपनी
बुद्धि को गिरवी रख देने जैसा ही है।
04.
दबी
हुई प्रतिभा, अनुकूल अवसर आने पर, विशाल आकार ले लेती है।
05.
ज्ञानी
को प्राकृतिक सुन्दरता संतुष्ट करती है, अज्ञानी को कृत्रिम।
06.
धन की सुरक्षा तिजोरी कर लेती है; किन्तु तन की
सुरक्षा स्वयं करनी पड़ती है।
07.
कोई
अचानक अमीर बन तो सकता है; लेकिन
विद्वान नहीं।
08.
भीड़ में उन्हीं चेहरों को पहचाना जाता है, जिन्होंने अपनी पहचान कायम कर ली है।
09.
जो
आंतरिक भय से ग्रस्त होते हैं, उनका स्वाभाव शंकालु होता हैं।
10.
काबिल व्यक्ति के जब हाथ-पाँव चलने लगते हैं; तो व्यवस्था सृजन का नया मोड़ ले लेती है।
11.
बड़प्पन
दिखाने का शौक भी आदमी को बहुत सी उलझनों में डालता है।
12.
प्रकाश
की गति से भी तेज केवल मानव “मन” होता हैं।
13.
ईमानदारी
के ओज से सिर्फ बेईमान डगमगाते हैं।
14.
आपसी
वैर की आग, अगर दीये की लौ की तरह अपने
तक ही सिमित रहे; तो किसी का कोई नुकसान नहीं होता।
15.
संगठित शक्ति जब एक ही दिशा में सकारात्मक
रूप से बढ़े, तब लाभ दिखलाती है।
16.
मूर्खता
का काम ही है, अंधेरे को ढोकर चारों और
फैलाना।
17.
कुछ चीजें समीप जाने पर बगैर मांगे मिल जाती
है, जैसे “बर्फ
के पास शीतलता” “अग्नि के पास गरमाहट” और
“गुलाब के पास सुगंध”।
18.
कांटे
अपने आप नहीं चुभते, जब तक उन पर पैर न रखा गया
हो।
19.
जिस अम्बर से कड़कती धूप आती है, उसीमें शीतल फुहारें भी हैं, बस थोडा धैर्य बनाये रखिये।
20.
क्रोध
हवा का वह झोंका है, जो बुद्धि के दीपक को बुझा
देता है।
21.
असंतुष्ट और दुखी लोगों से घिरा हुआ व्यक्ति
कभी संतुष्ट और सुखी नहीं हो सकता।
22.
संत
ऐसों को ही कहा जाता है, जिन्हें
दुनिया में दुःखी दिखाई देते हैं और वे दुःखों के निवारण का प्रयास करते हैं।
23.
जिनकी कामनाएँ अतृप्त होती हैं। उन्हें भोग-
विलास में ही सब कुछ नजर आता है। ऐसे ही व्यक्ति इस संसार में दुखी होते हैं।
24.
जो चादर से ज्यादा पाँव पसारते हैं; उन्हें एक दिन हाथ भी पसारना पड़ता हैं।
25.
अच्छा दिखने के लिये मत जिओ; बल्कि
अच्छा बनने के लिए जिओ।
26.
हर समझदार, कलात्मक और
बुद्धिमान व्यक्ति सादगी पसन्द होते हैं।
27.
क्रोध हवा का वह झोंका है, जो बुद्धि
के दीपक को बुझा देता है।
28.
धन को बरबाद करने पर तो आप
केवल निर्धन होते हैं, लेकिन समय को बरबाद करने पर आप जीवन का एक हिस्सा गंवा देते
हैं।
29.
गुण से भरी हुई बातें अपना
लेनी ही चाहिए, उनका कहने वाला कोई भी क्यों न हो; किन्तु अवगुण युक्त बाते नहीं अपनाना
चाहिए, चाहे उसका कहने वाला ब्रह्मा ही क्यों न हो।
30.
बात करने से ही बात बनती हैं; बात
ना करने से, दूरी
बढती हैं।
31.
अपनी ग़लतियों को दूसरों पर न
थोपें, इस तरह आप खुद के साथ धोखा करते हैं और दूसरों का विश्वास भी खोते हैं।
32.
अपनी वाणी के प्रभाव
की
क्षमता बनाए रखने के लिए हमेशा अर्थपूर्ण शब्दों
का ही उपयोग करें।
33.
जीवन में स्थायित्व की कमी
हैं; इसलिए यह विश्वास करना कि ऐसा सदा
बना रहेगा, सिर्फ धोखा हैं।
34.
प्रेम
अपमानित होकर द्वेष का रूप ले लेता हैं।
35.
यदि हाथ में घाव न हो तो उस हाथ
में विष रख लेने पर भी शरीर में विष का प्रभाव नहीं होता हैं। इसी प्रकार मन में
पाप न रखने वाले को, बाहरी कर्म का पाप नहीं लगता।
36.
जो दुखोत्पत्ति का कारण ही
नहीं समझ पाते, वे उसके निरोध/समाधान का उपाय भी नहीं ढूंढ़ पाते।
37.
अपने ही भीतर बड़ा हिस्सा
बदलाव चाहता हैं। खुद को उसके मुताबिक ढालें। आत्म-मंथन करें।
38.
समाजिक कुरीतियों का उल्लंघन
एवं विरोध; केवल चरित्र-बल पर ही किया जा सकता हैं; अन्यथा समाज में विकार का कारण
बनता हैं।
39.
दूसरों को क्षति पंहुचाकर
अपनी भलाई की आशा करना, जहर खाने के समान हैं।
40.
चरित्र
के बिना ज्ञान, बुराई की ताकत बन जाता है।
41.
अज्ञानी साधक, उस जन्मांध
व्यक्ति के समान हैं, जो सछिद्र नौका पर चढ़ कर नदी किनारे पहुचना चाहता हैं, जिसका
डूबना तय हैं।
42.
“पाप कर्म” ताजा दूध की तरह
तुरंत विकार नहीं लाता, वह तो सुप्त-अग्नि की तरह धीरे धीरे सुलगते हुए, उस मनुष्य
का पीछा करता हैं।
43.
उद्वेगपूर्ण विचार वैयक्तिक
होते हैं, उनकी मानसिक शक्ति सीमित होती है। शान्त विचार वृहद मन के विचार हैं, उनकी
शक्ति अपरिमित होती है।
44.
सरल मन से जियों; पर मन में
बारूद भर के मत जियों।
45.
माना दुनियाँ बुरी है, सब
जगह धोखा है; लेकिन हम तो अच्छे बनें, आदर्श रखें, हमें किसने रोका है?
46.
यदि हुल्लड़ को सांस्कृतिक
जामा पहिना दिया जाए, तब पिटने वाला अपने आपको सांस्कृतिक कहने लगेगा।
47.
संसार के व्यवहारों के लिए धन
ही सार वस्तु हैं| अत: मनुष्य को उसकी प्राप्ति के लिए सदाचार युक्त, युक्ति एवं साहस
के साथ यत्न करना चाहिए।
48.
जहाँ मुर्ख नहीं पूजे जाते, जहाँ
अनाज की सुरक्षा की जाती हैं और जहाँ परिवार में कलह नहीं होती, वहां लक्ष्मी
निवास करती हैं।
49.
कभी भी ज्यादा से ज्यादा लोगों
को खुश करने की कोशिश न करें, क्योकि जिन चीजों के बारे में आप जानते हैं, उनमे से
कुछ लोग नहीं मानेंगे और जिन चीजों में वे लोग विश्वाश रखते होंगे, उसे आप पसंद
नहीं करेंगे।
50.
नेकी के राही का; मंजिल भी सिर झुका कर स्वागत करती हैं।
51.
मनचाहा
बोलते हो तो; अनचाहा सुनना भी पड़ेगा।
52.
अभी उतनी ही राह पर चल पड़िये, जितना दिख रहा हैं। वहाँ पहुचने पर आगे फिर
दिखने लगेगा।
53.
सुन्दरता समय के साथ ढलने लगती है; लेकिन ज्ञान समय के साथ निखरने लगता है।
54.
जिन्हें सीढ़ी चढ़ना बोझ लगता है; वे कभी ऊंचाई पर पहुच नहीं पाते।
55.
संयुक्त परिवार में एक सदस्य का “दुःख-सुख” सभी के
चेहरे पर दिखाई पड़ने लगता हैं।
56.
सम्पदा को हासिल करने पर लोग बुद्धिमान और
गंवाने पर मूर्ख कहलाते हैं।
57.
प्रलोभन
किसी का भी हाल; कांटे में फंसी मछलियों जैसा कर
देता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें