(लगातार-सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत पुराण)
श्रीमद्भागवत महापुराण:
तृतीय स्कन्ध: चतुर्थ अध्यायः श्लोक 29-33 का हिन्दी अनुवाद
वेदों के मूल कारण जगद्गुरु श्रीकृष्ण के इस प्रकार आज्ञा देने पर उद्धव जी बदरिकाश्रम में जाकर समाधियोग द्वारा श्रीहरि की आराधना करने लगे।
कुरुश्रेष्ठ परीक्षित! परमात्मा श्रीकृष्ण ने लीला से ही अपना श्रीविग्रह प्रकट किया था और लीला से ही उसे अन्तर्धान भी कर दिया। उनका वह अन्तर्धान होना भी धीर पुरुषों का उत्साह बढ़ाने वाला तथा दूसरे पशुतुल्य अधीर पुरुषों के लिये अत्यन्त दुष्कर था।
परम भागवत उद्धव जी के मुख से उनके प्रशंसनीय कर्म और इस प्रकार अन्तर्धान होने का समाचार पाकर तथा यह जानकर कि भगवान् ने परमधाम जाते समय मुझे भी स्मरण किया था, विदुर जी उद्धव जी के चले जाने पर प्रेम से विह्वल होकर रोने लगे।
इसके पश्चात् सिद्धशिरोमणि विदुर जी यमुना के तट से चलकर कुछ दिनों में गंगा जी के किनारे जा पहुँचे, जहाँ श्रीमैत्रेय जी रहते थे।
साभार
krishnakosh.org
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