सही हल.
'आदि-आदि'...निशा ने लगभग चिल्लाते हुए, अपने सोलह साल के बेटे को आवाज़ दी, क्या हुआ- मम्मा,क्यूँ इतनी ज़ोर से आवाज़ लगा रही हो? आदि ने अपने कमरे से बाहर आते हुए पूछा-
'आदि आज मेरे पर्स में से फिर कुछ रुपये ग़ायब हैं, तुमने लिए हैं क्या, निशा ने ग़ुस्से से पूछा।
नहीं। मम्मा मैं भला बिना बताए, आपके पैसे क्यूँ लूँगा, आप हर थोड़े दिन बाद मुझसे यही पूछती रहती हो, आख़िर अपना पर्स इतनी लापरवाही से रखती ही क्यूँ हो।
आदि उलटा अपनी माँ को ही ग़लत ठहरा कर, अपने कमरे में वापिस चला गया ।निशा ग़ुस्से का घूँट पी कर रह गयी। पिछले कुछ महीनों से वो यूँ ही परेशान हो रही थी। जबसे उसके पर्स में से कुछ ना कुछ पैसे ग़ायब होने शुरू हुए थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो शक करे तो किस पर? घर में वो तीन ही लोग थे- निशा, उसके पति मयंक और उनका इकलौता बेटा आदित्य। इन तीनों के अलावा घर में सिर्फ़ उनकी मेड आशा आती थी, जो पिछले दस सालों से उनके घर काम करती थी, लेकिन तबसे आज तक उसने एक भी पैसे की गड़बड़ नहीं की थी, इसलिए निशा चाहकर भी उस पर शक नहीं कर सकती थी। लेकिन अब समस्या बहुत गम्भीर हो चुकी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो करे तो क्या करे?
पहली बार जब उसके पैसे चोरी हुए थे, तो उसने अपने पति और बेटे से बात की, तब मयंक ने उसे ये कहकर दिलासा दिया था कि शायद वो ही कहीं रखकर भूल गयी होगी या फिर ग़लती से कहीं गिर गये होंगे, तब उसे भी ऐसा लगा था कि शायद उसे ही ग़लतफ़हमी हो गयी होगी; लेकिन तब से लेकर अब तक ऐसा बहुत बार हो चुका था। जब उसे लगा कि पर्स में रुपये कम हैं। फिर आज ही की बात ले लो, कल शाम को ही उसने पूरे दस हज़ार रुपए गिनकर अपने पर्स में रखे थे; लेकिन आज एक पार्सल आने पर उसकी पेमेंट के लिए जैसे ही उसने पर्स खोला नौ हज़ार रुपए देखकर, उसका माथा ठनक गया, अब उसका शक, यक़ीन में बदल गया कि उसके पैसे लगातार चोरी हो रहे हैं। आशा कल शाम से अब तक आयी नहीं थी; इसलिए उस पर शक करना बेमानी था, मयंक ऐसा करना तो दूर, सोच भी नहीं सकते थे। आख़िर वो ही तो उसे घर ख़र्च के अलावा उसका जेब-ख़र्च भी देते थे। अब सिर्फ़ आदित्य था, उसका अपना बेटा; जिस पर उसका शक जा रहा था। उसे ये सोचकर ही घबराहट हो रही थी कि आदित्य ऐसा काम कैसे कर सकता है? उसको बचपन से ही निशा ने अपनी तरफ़ से बहुत अच्छे संस्कार दिए थे। उसकी हर जायज़ फ़रमाइश, वो दोनो पूरी करते थे। फिर भी आदि ऐसा काम कैसे कर सकता है, वो बहुत चिंतित हो गयी कि क्या करे अब? अब अगर उसने मयंक से बात की, तो वो भी उसे ही डाँटेगे कि तुम सही से रुपए पैसे का ध्यान नहीं रखती हो। लेकिन ये तो तय था कि उसे इस समस्या का सही हल तो निकालना ही था।
उसने सारी बातों को सोच विचार कर आदि से बात करने का सोचा। सबसे पहले उसने अपना ग़ुस्सा शांत किया क्योकि वो जानती थी कि टीनेज बच्चों के साथ कैसे डील किया जाए। अगर किशोरावस्था में बच्चों के साथ सख़्ती की जाए या उन पर हाथ उठाया जाए, तो बच्चे अक्सर माता पिता को अपना दुश्मन समझने लगते हैं; जोकि बिल्कुल ग़लत होता है, क्यूँकि असल में माता पिता से बड़ा हमारा कोई हितैषी नहीं होता। यही बात आज उसे आदि को समझानी थी।
ख़ुद को संयत करते हुए वो आदि के कमरे में गयी, 'आदि , मुझे तुमसे कुछ बात करनी है बेटा'। बोलो मम्मा, आदि बोला- देखो बेटा तुम जानते हो कि पिछले कुछ समय से घर में क्या हो रहा है। आए दिन मेरे पैसे चोरी हो रहे हैं। मैंने हर बार तुमसे पूछा, लेकिन तुमने मना कर दिया, तुम कहते हो कि हो सकता है कि आशा [कामवाली] ने लिए होंगे; लेकिन बेटा मैंने कल शाम को ही अच्छे से पैसे गिनकर रखे थे; अब उसमें से भी एक हज़ार रुपए गायब हैं। आशा तो अभी तक आयी भी नहीं है, सोचो फिर पैसे कहाँ जा सकते हैं।
इतना कहकर निशा ने ग़ौर से आदि के चेहरे की तरफ़ देखा, एक पल में उसके चेहरे का रंग बदला था, लेकिन दूसरे ही पल वो ग़ुस्सा हो गया। मम्मा- आपको क्या लगता है; मैं चोर हूँ, क्या जो बार बार आपके पैसे चुराऊँगा, निशा को उससे इसी प्रतिक्रिया की उम्मीद थी।
इसलिए वो उसके भड़कने पर भी शांत रही, क्यूँकि आज उसने ठान लिया था कि वो आदि से सच उगलवा कर रहेगी। नहीं बेटा मैं ये बिल्कुल नहीं कह रही कि तुम चोर हो, लेकिन तुम हो तो अभी बच्चे ही ना और बेटा ग़लती तो किसी से भी हो जाती है, बड़ों से भी और बच्चों से भी। देखो बेटा! हम सबसे अपनी ज़िंदगी में कुछ ना कुछ ग़लतियाँ ज़रूर हुई होती हैं लेकिन अच्छा और समझदार इंसान वही होता है, जो अपनी की हुई ग़लतियों से सबक़ सीखे और उन्हें फिर से ना दोहराए, ऐसा कहकर निशा ने उसे समझना चाहा। लेकिन वो इतनी आसानी से कहाँ मानने वाला था इसलिए बोला ... पर मम्मा मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है। लेकिन निशा जो बहुत ग़ौर से उसकी तरफ़ देख रही थी, उसने महसूस किया कि ये बात कहते हुए आदि ने उससे नज़रें चुरा ली थी। निशा ने बात जारी रखते हुए कहा ..ठीक है, आदि अगर तुम कहते हो तो मैं आशा के आते ही उससे बात करूँगी; लेकिन सोचो अगर उसने ऐसा कोई काम नहीं किया होगा, तो उसे कितना बुरा लगेगा, हो सकता है, वो हमारा काम भी करना बंद कर दे और यही नहीं जिन और लोगों के घर में वो काम करती है, उन लोगों को भी ये बात पता चल जाएगी। हो सकता है, वो लोग यही कहें कि होगा कोई घर का ही सदस्य, जिसने चोरी की होगी; क्यूँकि वो सब लोग भी आशा को अच्छे तरीक़े से जानते हैं कि वो बहुत मेहनती और ईमानदार है।
आदि मैं नहीं चाहती कि हमारे घर की बाते इस तरह फैलें, अगर मैं तुम्हारे पापा से बात करूँगी, तो उन्हें भी तुमपे ही शक होगा और हो सकता है कि वो तुमपे ग़ुस्से में हाथ उठाएँ और ऐसा मैं बिल्कुल नहीं चाहती बेटा, इसलिए आदि प्लीज़ बेटा! अगर तुमने ग़लती से भी ये ग़लती की है, तो अपनी माँ को बता दो। मैं तुमसे ये वादा करती हूँ कि मैं इसे तुम्हारा बचपना समझ कर माफ़ कर दूँगी; लेकिन तुम्हें भी मुझसे ये वादा करना होगा कि तुम फिर कभी ऐसा कोई काम नहीं करोगे। बेटा तुम्हारी उम्र में अक्सर बच्चे बुरी संगत में पड़कर ऐसी ग़लतियाँ कर जाते हैं; तुम्हें डरने और घबराने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है। तुम्हारी माँ तुम्हारे साथ है बेटा, निशा ने बहुत प्यार से उम्मीद भरी नज़रों से आदि को देखते हुए कहा।
माँ की आँखों में ग़ुस्से की जगह प्यार देखकर आदि टूट गया और रोने लगा, निशा ने प्यार से उसे गले लगा कर चुप कराया, उसे पानी पिलाया।
हाँ मम्मा मैंने ही आपके पर्स में से पैसे चुराए हैं, वो भी एक नहीं कई बार।
लेकिन ऐसा क्यूँ किया आदि? निशा ने पूछा –
मम्मा मेरा एक दोस्त है; उसे उसके पापा से बहुत ज़्यादा पॉकेट-मनी मिलती है; मुझसे भी काफ़ी ज़्यादा। तो वो रोज़ मुझे आकर चिढ़ाता था कि देख आदि, मेरे पास तुझसे ज़्यादा पैसे हैं। तब मुझे बहुत ग़ुस्सा आता था, इसलिए उसे सबक़ सिखाने के लिए मैंने आपके पर्स से पैसे चुराने शुरू कर दिए ताकि मैं उसे ये बता सकूँ कि मेरे पास उससे भी ज़्यादा पैसे हैं। आई ऐम सॉरी मम्मा! मैं मानता हूँ मेरी ग़लती है, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था; प्लीज़ आप मुझे माफ़ कर दो। आदि ये कहकर फि से रोने लगा।
निशा ने आगे बढ़कर उसे गले लगाते हुए कहा - ठीक है, आदि। मैं तुम्हें इस बार माफ़ करती हूँ; पर बेटा तुम वादा करो, मुझसे।
पक्का, मम्मा! मैं आपसे पक्का वादा करता हूँ कि आज के बाद ऐसी कोई ग़लती नहीं करूँगा आप मुझ पर विश्वास करो।
टीनेज में बच्चे ग़लत संगत में पड़ कर अक्सर इस तरह की ग़लतियाँ कर जाते हैं। पर हम, माँ-बाप का फ़र्ज़ है कि हम उनके दोस्त बनें, उन्हें समय दें, उनके संगी साथियों पर भी नज़र रखें। अच्छे बुरे का ज्ञान तो सब लोग अपने बच्चों को देते ही हैं; लेकिन निशा की तरह, ग़लती होने पर उसे सुधारने और उसे फिर से ना दोहराने का ज्ञान भी दीजिए।
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