गुरु गोविन्दसिंह के बच्चे.


गुरु गोविन्दसिंह के बच्चे.

गुरुगोविन्दसिंह ने अपने १६ वर्षीय बड़े पुत्र अजीतसिंह को आज्ञा दी कि 'तलवार लो और युद्ध में जाओ। पिता की आज्ञा पाकर अजीत सिंह युद्ध में कूद पड़ा और वहीं काम आया। इसके बाद गुरु ने अपने द्वितीय पुत्र जोझारसिंह को वही आज्ञा दी। पुत्र ने इतना ही कहा- 'पिताजी प्यास लगी है, पानी पी लूँ। ' इस पर पिता ने कहा-'तुम्हारे भाई के पास खून की नदियाँ बह रही हैं। वहीं प्यास बुझा लेना।' जोझारसिंह उसी समय युद्ध क्षेत्र को चल दिया और वह अपने भाई का बदला लेते हुए मारा गया।

इन बच्चों के बलिदान से सिखों में ऐसी आग पैदा हुई कि दुश्मनों को अपना खेमा उखाड़ते ही बना। आदर्शो से जुड़ने वाले नरपुंगव दैवी अनुग्रह के पात्र किस प्रकार बनते हैं, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण आद्य शंकराचार्य, स्वामी दयानन्द, मीरा, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी रामतीर्थ एवं तुलसीदास हैं। इन्होंने प्रतिकूलताओं से संघर्ष हेतु साहस दिखाया-यह दैवी अनुग्रह ही था, जो उनके अन्त: में प्रेरणा के रूप में उभरा एवं आदर्शवादी उत्कृष्टता से जुड़कर बदले में उन्हें यश-सम्मान भी दे गया।



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