आप अपने मित्र
भी हो और शत्रु
भी.
इस बात का शोक मत करो कि मुझे बार- बार असफल होना पड़ता है। परवाह मत करो क्योंकि समय अनन्त है। बार- बार प्रयत्न करो और आगे की ओर कदम बढ़ाओ। निरन्तर कर्तव्य करते रहो, आज नहीं तो कल तुम सफल होकर रहोगे।
सहायता के लिए दूसरों के सामने मत गिड़गिड़ाओ क्योंकि यथार्थ में भी इतनी शक्ति नहीं है, जो तुम्हारी सहायता कर सके। किसी कष्ट के लिए दूसरों पर दोषरोपण मत करो, क्योंकि यथार्थ में कोई भी तुम्हें दुःख नहीं पहुँचा सकता। तुम स्वयं ही अपने मित्र हो और स्वयं ही अपने शत्रु हो। जो कुछ भली बुरी स्थितियाँ सामने हैं, वह तुम्हारी ही पैदा की हुई हैं। अपना दृष्टिकोण बदल दोगे तो दूसरे ही क्षण यह भय के भूत अंतरिक्ष में तिरोहित हो जावेंगे।
(पं श्रीराम शर्मा आचार्य)
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