क्या परमात्मा के नाम जप से, प्रारब्ध बदला जा सकता है?


क्या परमात्मा के नाम जप से,
प्रारब्ध बदला जा सकता है?

हम अपने आस-पास देखते है, तो पाते है कि कुछ व्यक्ति रोज घंटा दो घंटा पूजा पाठ करते है। परमात्मा के नाम का जप करते है, फिर भी हम उसे दुःखी पाते है। तो हमारे मन में यह प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों, जबकि दुसरी ओर परमात्मा का नाम नहीं लेने वाला अर्थात नास्तिक हर क्षेत्र में सफलता अर्जित करता हुआ तथा सुखी नजर आता है।

इस कारण बहुत से लोग यह कहते सुने जाते है कि “धार्मिक व्यक्तियों को धक्का मिलता है, जबकि पपिओं को पालने में झुलना मिलता है। इस कारण बहुत से व्यक्ति परमात्मा के नाम का जप नहीं करते है। किसी व्यक्ति को इस जन्म में दुःख व सुख उसके प्रारब्ध के कारण मिलता है।

ग्रन्थों के अनुसार, परमात्मा के दर्शन हो जाय और ज्ञान प्राप्त हो जाय फिर भी प्रारब्ध का फल, इंसान को भोगना ही पड़ता है। ज्ञान प्राप्ति से संचित और क्रियमाण कर्मो का नाश होता है परन्तु प्रारब्ध का नाश नहीं होता। अर्थात ज्ञान से प्रारब्ध बड़ा है, इसलिए संत व महापुरूष कष्ट सहन करते दिखाई पड़ते है।

प्रश्न हैं कि विधाता ने जो प्रारब्ध में लिखा है, उसे क्या मिटाया जा सकता है?

“दास बोध” ग्रन्थ में रामदास स्वामी ने लिखा है कि व्यक्ति पराये अन्न का त्याग करे, ब्रहृमचर्य का पालन करे तथा नियमित प्रभु के नाम का जप करें, तो प्रारब्ध को बदला जा सकता है, परन्तु पॉच दस माला रोज जपने से प्रारब्ध का क्षय नहीं होता। प्रारब्ध क्षय करने के लिए बहुत अधिक मात्रा में जपानुष्ठान करनना पड़ता है।

जप करने पर भी जप का फल बहुत बार प्राप्त नहीं होता, क्योंकि पूर्वजन्म के पाप की मात्रा अधिक होती है और जाप से उनका छय क्रमिक रूप से हो रहा होता है। व्यक्ति का एक भी जप बेकार नहीं जाता।

जन्म कुण्डली में बारह घर होते है तथा प्रथम स्थान- तनु स्थान है. अर्थात शरीर का सुख-दुख इस भाव से देखा जाता है। यदि एक करोंड जप व्यक्ति करे तो उसे शरीर की बीमारी नहीं होती और यदि हो तो दूर हो जाती है।

द्वितीय स्थान- धन, कुटुम्ब व वाणी का है। यदि व्यक्ति दो करोंड़ जप करे तो उसका दुसरा भाव अच्छा हो जाता है अर्थात धन-सुख मिलता है, कुटुम्ब का सुख मिलता है और वाणी मधुर हो जाती है साथ ही दरिद्रता दूर हो जाती है।

तृतीय भाव- पराक्रम का है। यदि तीन करोंड़ जप व्यक्ति करे तो उसके पराक्रम में वृद्धि होती है। वह जो भी कार्य हाथ में ले, उसमें सफलता मिलती है एवं यशश्वी-कीर्तिवान हो जाता है।

चतुर्थ भाव- सुख का भाव, सह माता, भूमि, भवन व वाहन सुख से सम्बन्धित है। यदि व्यक्ति चार करोड़ जप करे, तो उसे वाहन सुख, भूमि व मकान का सुख प्राप्त हो जाता है।

पॉचवा भाव- विद्या, बुद्धि व संतान का है। यदि व्यक्ति पॉच करोंड़ जप करे तो उसकी बुद्धि में ज्ञान का उदय होता है, प्रारब्ध का लाभ मिलना प्रारब्ध हो जाता है, विद्या की प्राप्ति होती है और संतान सुख बढ़ता है।

छठा भाव- शत्रु / ऋण का भाव है। छः करोंड़ जप करने पर व्यक्ति सभी ऋण से मुक्त हो जाता है तथा शत्रु समाप्त हो जाते है अर्थात मन में काम, क्रोध, राग-द्वेश, मद, मत्सर, अहंकार आदि जो शत्रु है, उसका नाश हो जाता है।

सप्तम स्थान- दाम्पत्य का है। यदि व्यक्ति सात करोंड जप करे तो स्त्री-पुरूष कोई भी हो, उसे अखण्ड दाम्पत्य की प्राप्ति हो जाती है।

अष्टम स्थान-
आयु व पुरातत्व सुख का है। आठ करोंड जप करने पर व्यक्ति की अप-मृत्यु टल जाती है साथ ही पूर्णायु प्राप्त करता है तथा पुरातत्व सुख को प्राप्त करता है।

नवम भाव- धार्मिकता/ भाग्य का है। नौ करोंड जप करने पर व्यक्ति का भाग्योदय होता है तथा उसे स्वप्न में देव पुरूष के दर्शन अर्थात साक्षात्कार होने लगता है।

दस करोंड जप करे तो संचित कर्म का नाश, ग्यारह करोंड जप करे तो क्रियमाण कर्म का नाश तथा बारह करोंड जप करने पर प्रारब्ध का नाश संभव है।
इसलिए प्रभु के नाम का सुमिरन चौबीसो घंटे करना है जप करते-करते ही सोना है ताकि जब आप सो जाए तब भी जप चलता रहे।

यदि चौबीसो घंटे प्रभु का सुमिरन करोंगे तो सारा प्रारब्ध समाप्त हो जाता है अर्थात विधाता का लिखा हुआ भी बदला जा सकता है।

रामदासजी महाराज जो शिवाजी के गुरु भी थे, ने पानी में खड़े होकर अखंड जप किया था, जिसके फलस्वरूप उन्हें भगवान् श्रीराम का साक्षात्कार हो गया था, तभी से उनके नाम के साथ समर्थ जुड़ गया। उनका कहना हैं कि यदि 45 करोड़ राम नाम का जप पूर्ण आस्था के साथ कर लिया जाये तब भगवान् के दर्शन हो जाते हैं।




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