क्या मौत का ऐसे स्वागत कर पाएंगे,
जैसा इन्होंने किया?
(सुधांशु जी महाराज)
देश के जवानों का कार्य किसी योगी से कम नहीं है, किसी भक्त से कम नहीं है। इनका कार्य संसार में सबसे ऊंचा है। हमारे देश में एक बहुत बड़े क्रांतिकारी हुए-रामप्रसाद बिस्मिल।
काकोरी काण्ड के इस अमर शहीद को फांसी होने से तीन दिन पहले गोरखपुर जेल में, जेलर स्टीफन, मिलने के लिए आए। रामप्रसाद के साथ हुई भेंट का वर्णन करते हुए जेलर स्टीफन ने जेम्स केल्हन एक लेखक, जिसने भारत के सम्बन्ध में एक पुस्तक लिखी, को दिए इंटरव्यू में वीरता की रोमांचकारी घटना का उल्लेख किया।
स्टीफन कहता है, ‘‘मैं जब जेल में गया तो मैंने देखा रामप्रसाद बिस्मिल गाना गा रहा है और आसपास वाले बैरक के कैदियों को चुटकले सुना-सुना कर हंसा रहा है। मैं उसके पास गया और कहा कि, रामप्रसाद! तीन दिन के बाद तुम्हें फांसी होने वाली है, तुम यह सब क्या कर रहे हो? उसने कहा, ‘‘हां जेलर साहब, तीन दिन के बाद तो फांसी होगी, लेकिन तीन दिन पहले मुझे नहीं मरना। तीन दिन तक तो हंस करके जीऊंगा। मैंने कहा कि ऐसा करने से मौत तो दूर नहीं जाएगी, मौत तो अपनी जगह है।
रामप्रसाद बोला,‘‘जेलर साहब, कायर आदमी तो दिन में हजार बार मरता है, वीर तो जीवन में एक बार ही मरता है वीर जिंदादिली से मौत का सामना करता है और जब तक जीता है, जिंदादिली से जीता है, मुस्कुरा कर जीता है, कायरों की तरह नहीं।’’
जेलर कहता है, ‘‘आदमी थोड़ा सिरफिरा है, इससे क्या बात करूं!’’ जिस दिन रामप्रसाद को फांसी होने वाली थी, मजिस्ट्रेट आए, डॉक्टरों को भेजा गया चैक-अप के लिए, पुलिस के लोग आकर खड़े हो गए। मैं भी सोचता हुआ आ रहा था कि अब इस आदमी को फांसी होने वाली है तो इसका सिर नीचे झुका हुआ होगा, गिड़गिड़ाने लगेगा, और कहेगा किसी तरह बचाओ मुझे, जेलर साहब! मैं जीना चाहता हूं।
स्टीफन कहता है,‘‘मैं जब उस आदमी की कोठरी में गया, जहां उसे बंद करके रखा गया था, मैंने तो सोचा था कि वो सिर झुकाए बैठा मिलेगा, लेकिन मैं यह देखकर हैरान हो गया कि वह दण्ड-बैठक लगा रहा था। मुझे लगा यह आदमी तो पागल है, इसका दिमाग थोड़ा घूम गया है।
मैं उसके पास गया और मैंने उससे कहा,‘‘रामप्रसाद! यह क्या कर रहे हो?’’ रामप्रसाद बोला,‘‘ये सब लोग रो रहे हैं, कह रहे हैं कि मैं थोड़ी देर में मर जाऊंगा और मौत का थोड़ा सा ख्याल मुझे आता भी है, तो दण्ड-बैठक लगाकर मैं मौत को डरा रहा हूं, थोड़ा दूर भगा रहा हूं उसको।’’
जेलर सोच रहा था कि मौत की इस बोझिल घड़ी में भी कोई इंसान मुस्कुरा सकता हो, मजाक कर सकता हो, ऐसा तो बहुत मुश्किल होता है। इसने सोचा कि इस व्यक्ति के विचार जानने चाहिए। जेलर ने कहा, ‘‘रामप्रसाद, जिंदगी के बारे में तुम्हारा तजुर्बा क्या है?कुछ बात तो बताओ।’’
अमर शहीद रामप्रसाद कहने लगे, ‘‘जेलर साहब, ये जिंदगी तो एक यात्रा है। एक न एक दिन तो यह सफर खत्म हो ही जाएगा। लेकिन जेलर साहब, रोने वालों को यह सफर काटना मुश्किल हो जाएगा, हंसने वालों को पता भी नहीं चलेगा, कब यह सफर पूरा हो गया। इसलिए हंस करके जिंदगी बिता रहा हूं।’’
जेलर कहता है कि, ‘‘न जाने कितनी ही बातें उसने मुझे बताई और मैं सोच रहा था कि यह रामप्रसाद तो मेरे लिए एक अच्छा ‘गुरु’ हो सकता था। मैं इस आदमी से पहले मिला क्यों नहीं? इससे बातचीत क्यों नहीं की? मैंने फिर पूछा, ‘‘रामप्रसाद, कोई आखिरी इच्छा हो तो बताओ।’’ वह बोला, ‘‘आखिरी इच्छा तो यही है कि देश आशाद होना चाहिए। हां, जब फांसी होने लगे, एक बार शीशा लाकर मुझे अवश्य दिखा देना, मैं अपना रूप देखना चाहता हूं।’’
मैंने उसकी तरफ अपनी डायरी बढ़ाई और कहा कि ‘‘तुम इसमें कुछ लिख दो।’’ उसने जो भाव लिखे उसको लेकर किसी शायर ने दो पंक्तियां कही हैं।
‘‘पसीना मौत का माथे पर आया है आईना लाओ, हम अपनी जिंदगी की आखिरी तस्वीर देखेंगे।’’ कि मरते समय हम लगते कैसे हैं?
जेलर कहता है, ‘‘मेरी आंखों से आंसू बहने लगे। ऐसा आदमी, जिंदादिली से भरा हुआ इंसान! वीरता से भरा हुआ महावीर! उस आदमी का मैं साथ क्यों नहीं ले पाया अब तक? मजिस्ट्रेट आ गया, डॉक्टर अपना कार्य कर चुके, इसे लेकर जब फांसी के लिए जाने लगे तो यह एक बैरक के सामने से जाते हुए आवाज देते हुए जा रहा था, भाइयो! जिंदगी तो एक दिन खत्म होगी, लेकिन कायरों की तरह नहीं जीना। हंसो, मुस्कुराओ, जिन्दगी का सामना करो। रोने, गिड़गिड़ाने की आदत मत बनाओ।’’
जब इसको ले जाकर फांसी के फंदे पर खड़ा कर दिया गया, हमने देखा, अपने हाथ से फंदा लेकर इसने अपने गले में डाला और जल्लाद को देखकर के कहा,‘‘जरा कसके लगाना। रामप्रसाद की जान आसानी से निकलने वाली नहीं है। यह आदमी बड़ा मजबूत है।’’
वह जल्लाद, जिसकी आंखें लाल थीं, आकाश की तरफ देखकर उसने अपने दोनों हाथ ऊपर उठाए और बोला,‘‘लिल्लाह, परवर दिगारे आलम, जिस आदमी को दुनिया में जीने का ढंग आता हो, उसको मौत की सजा नहीं मिलनी चाहिए। पहली बार हमने यहां एक जिंदा आदमी को खड़े देखा है। अब तक तो मैंने मुर्दों को ही फांसी दी है। अधमरे लोग यहां तक आते थे। पहली बार एक ऐसा आदमी आया है जो यहां आकर भी हंस सकता है।’’
रामप्रसाद को काली टोपी पहना दी गई। हाथ पीछे बांधे जा रहे थे। मजिस्ट्रेट अपनी घड़ी देख रहा था और कहा गया, कुछ लोगों से कि प्रार्थना करो, मेरी आंखों में आंसू थे। मैं बोला ‘‘रामप्रसाद, अलविदा!’’ इतना सुनना था, रामप्रसाद जोर से चीख कर बोला, ‘‘नहीं, जेलर साहब! अलविदा नहीं कहना।
तुम्हारी संस्कृति में अलविदा कहा जा सकता है, हमारी संस्कृति में नहीं। हम फिर मिलेंगे। एक पर्दा गिरने वाला है, एक पर्दा फिर उठेगा। मैं जन्म लेकर इस धरती पर फिर आऊंगा। हम फिर मिलेंगे।’’
हमारे देश में आत्मा को अमर कहा गया है। जेलर कहता है,‘‘कि मैं आज भी ढूंढ़ रहा हूं कि कहीं मेरे रामप्रसाद ने, मेरे गुरु ने जन्म ले लिया होगा। कहीं मुझे मिल जाए, मेरा रामप्रसाद मुझे जीना सिखाए। और जेलर कहता है कि,‘‘मैं यही मांगता हूं भगवान से, अगर मैं मरकर दोबारा जन्म लूं तो भारत की धरती पर ही जन्म लूं और मुझे कोई सद्गुरु रामप्रसाद जैसा मिल जाए जो मुझे जीना सिखाए और मरना भी सिखाए।
तो जरा सोच कर देखिए कि आत्मा की अमरता पर विश्वास करने वाला वीर किसी योगी से कम तो नहीं है। आवश्यकता है, अपने वीर शहीदों का सम्मान करने की। जो कौम अपने वीरों का सम्मान करती है वो कौम जिंदा रहती है और जो कौम अपने वीरों का सम्मान नहीं कर सकती वो मिट जाया करती है।
इसलिए, अपने वीरों का सम्मान करना सीखो। उनकी गाथाएं सुनाओ, अपने बच्चों को। छुट्टियों के दिनों में बच्चों को महान पुरुषों के जीवन गाथाएं पढ़ने के लिए दो, जिन्हें पढ़कर उनमें उत्तम संस्कारों का उदय हो।
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