मौत पीछा नहीं छोड़ती.


मौत पीछा नहीं छोड़ती.

एक बादशाह ने एक दिन सपने में अपनी मौत को आते हुए देखा। उसने सपने में अपने पास खड़ी एक छाया देख, उससे पूछा-'तुम कौन हो? यहां क्यों आयी हो?'

उस छाया ने उत्तर दिया-मैं तुम्हारी मौत हूं और मैं कल सूर्यास्त होते ही तुम्हें लेने तुम्हारे पास आऊंगी।' बादशाह ने उससे पूछना भी चाहा कि क्या बचने का कोई उपाय है, लेकिन वह इतना अधिक डर गया था कि वह उससे कुछ भी न पूछ सका। तभी अचानक सपना टूट गया और वह छाया भी गायब हो गयी। आधी रात को ही उसने अपने सभी अक्लमंद लोगों को बुलाकर पूछा-'इस स्वप्न का क्या मतलब है, यह मुझे खोजकर बताओ।' और जैसा कि तुम जानते ही हो, तुम बुद्धिमान लोगों से अधिक बेवकूफ कोई और खोज ही नहीं सकते। वे सभी लोग भागे-भागे अपने-अपने घर गये और वहां से अपने-अपने शास्त्र साथ लेकर लौटे। वे बड़े-बड़े मोटे पोथे थे। उन लोगों ने उन्हें उलटना-पलटना शुरू कर दिया और फिर उन लोगों में चर्चा-परिचर्चा के दौरान बहस छिड़ गयी। वे अपने-अपने तर्क देते हुए आपस में ही लड़ने-झगड़ने लगे।

उन लोगों की बातें सुनकर बादशाह की उलझन बढ़ती ही जा रही थी। वे किसी एक बात पर सहमत ही नहीं हो पा रहे थे। वे लोग विभिन्न पंथों के थे। जैसा कि बुद्धिमान लोग हमेशा होते हैं, वे स्वयं भी स्वयं के न थे।

वे उन सम्प्रदायों से सम्बन्ध रखते थे, जिनकी परम्पराएं मृत हो चुकी थीं। उनमें एक हिन्दू, दूसरा मुसलमान और तीसरा ईसाई था। वे अपने साथ अपने-अपने शास्त्र लाये थे और उन पोथों को उलटते-पलटते, वे बादशाह की समस्या का हल खोजने की कोशिशों पर कोशिशें कर रहे थे। आपस में तर्क-विर्तक करते-करते वे जैसे पागल हो गये। बादशाह बहुत अधिक व्याकुल हो उठा क्योंकि सूरज निकलने लगा था और जिस सूर्य का उदय होता है, वह अस्त भी होता है क्योंकि उगना ही वास्तव में अस्त होना है। अस्त होने की शुरुआत हो चुकी है। यात्रा शुरू हो चुकी थी और सूर्य डूबने में सिर्फ बारह घंटे बचे थे।

उसने उन लोगों को टोकने की कोशिश की, लेकिन उन लोगों ने कहा-'आप कृपया बाधा उत्पन्न न करें। यह एक बहुत गम्भीर मसला है और हम लोग हल निकालकर रहेंगे।'

तभी एक बूढ़ा आदमी-जिसने बादशाह की पूरी उम्र खिदमत की थी-उसके पास आया और उसके कानों में फुसफुसाते हुए कहा-'यह अधिक अच्छा होगा कि आप इस स्थान से कहीं दूर भाग जायें क्योंकि ये लोग कभी किसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे नहीं और तर्क-वितर्क ही करते रहेंगे और मौत आ पहुंचेगी। मेरा आपको यही सुझाव है कि जब मौत ने आपको चेतावनी दी है, तो अच्छा यही है कि कम-से-कम आप इस स्थान से कहीं दूर सभी से पीछा छुड़ाकर चले जाइए। आप कहीं भी जाइयेगा, बहुत तेजी से।' यह सलाह बादशाह को अच्छी लगी-'यह बूढ़ा बिल्कुल ठीक कह रहा है। जब मनुष्य और कुछ नहीं कर सकता, वह भागने का, पीछा छुड़ाकर पलायन करने का प्रयास करता है।'

बादशाह के पास एक बहुत तेज दौड़ने वाला घोड़ा था। उसने घोड़ा मंगाकर बुद्धिमान लोगों से कहा-'मैं तो अब कहीं दूर जा रहा हूं और यदि जीवित लौटा, तो तुम लोग तय कर मुझे अपना निर्णय बतलाना, पर फिलहाल तो मैं अब जा रहा हूं।'

वह बहुत खुश-खुश जितनी तेजी से हो सकता था, घोड़े पर उड़ा चला जा रहा था क्योंकि आखिर यह जीवन और मौत का सवाल था। वह बार-बार पीछे लौट-लौटकर देखता था कि कहीं वह साया तो साथ नहीं आ रहा है, लेकिन वहां स्वप्न वाले साये का दूर-दूर तक पता न था। वह बहुत खुश था, मृत्यु पीछे नहीं आ रही थी और उससे पीछा छुड़ाकर दूर भागा जा रहा था।

अब धीमे-धीमे सूरज डूबने लगा। वह अपनी राजधानी से कई सौ मील दूर आ गया था। आखिर एक बरगद के पेड़ के नीचे उसने अपना घोड़ा रोका। घोड़े से उतरकर उसने उसे धन्यवाद देते हुए कहा-'वह तुम्हीं हो, जिसने मुझे बचा लिया।'

वह घोड़े का शुक्रिया अदा करते हुए यह कह ही रहा था कि तभी अचानक उसने उसी हाथ को महसूस किया, जिसका अनुभव उसने ख्वाब में किया था। उसने पीछे मुड़कर देखा, वही मौत का साया वहां मौजूद था।

मौत ने कहा-'मैं भी तेरे घोड़े का शुक्रिया अदा करती हूं, जो बहुत तेज दौड़ता है। मैं सारे दिन इसी बरगद के पेड़ के नीचे खड़ी तेरा इन्तजार कर रही थी और मैं चिन्तित थी कि तू यहां तक आ भी पायेगा या नहीं क्योंकि फासला बहुत लंबा था। लेकिन तेरा घोड़ा भी वास्तव में कोई चीज है। तू ठीक उसी वक्त पर यहां आ पहुंचा है, जब तेरी जरूरत थी।'

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