अपनी असफलताओं से
निराश न हों, यह काम करें.
(सुधांशु जी महाराज)
जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से आप मुंह नहीं मोड़ सकते। लेकिन इंसान जो चाहता है वह उसे मिल नहीं पाता और जो मिलता है उससे उसकी कामनाओं का मेल नहीं होता। फिर आदमी को घोर निराशा होती है, रोने के सिवाए कुछ नहीं बचता। एक ही जगह पड़े रहने को मन करता है।
निराशा की स्थिति में ज्यादा अकेले नहीं बैठना, काम से जुड़े रहना। आपके मस्तिष्क और शरीर को ऑक्सीजन की बहुत जरूरत है। 5-10 मिनट व्यायाम करो, संगीत सुनो और न भी कुछ आए तो हाथ-पांव हिलाओ, भले ही दरवाजा बंद करके हिलाना। क्योंकि जो तरंगें आपको हिलाती हैं, वे आपकी निराशा को तोड़कर जाती हैं।
थोड़ा बच्चों के साथ बैठिए, पंछियों की उड़ान को देखिए, बहते हुए झरने को देखिए, सागर के किनारे जाकर खड़े होइए, सागर की लहरों को देखिए। निराशा की गुफा से बाहर निकलने की कोशिश नहीं करोगे तो कभी भी डिप्रेशन से पार नहीं जा पाओगे।
शरीर को अच्छी खुराक दो, ताजे फल और हरी सब्जियां खाओ। साथ ही थोड़ा पसीना भी जरुर बहाएं। अपने अंदर लेकर श्वास खींचें, खुलकर हंसने की कोशिश करें, संगीत में रुचि पैदा करें.... तो डिप्रेशन आपके ऊपर हावी नहीं होगा।
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