इनकी पूजा से
जीवन में सुख-समृद्घि आएगी.
(सुधांशु जी महाराज)
इसलिए भारतीय संस्कृति और सभ्यता के प्रेरणा स्रोत वेद, उपनिषद्, रामायण, गीता, पुराण आदि समस्त धर्मग्रन्थों तथा महापुरुषों की मातृ-पितृ भक्ति के प्रमाणों की एक स्वर में पुकार के आधर पर आधरित पर्व की नींव रखी गई जिसे ‘‘श्राद्घपर्व’ कहते हैं।
उपनिषद् में ‘मातृदेवो भव, पितृदेवो भव,’’ आदि ब्रह्म वाक्यों द्वारा माता-पिता की गरिमा का गुणगान कर जो इनके प्रति अपनी भावपूर्ण संवेदनाएं प्रकट की हैं, निश्चय ही वह उनके त्याग, तपस्या, सेवा स्नेह, विश्वास और कर्तव्य परायणता का ही सुपरिणाम है।
मनुस्मृति में मनु महाराज ने कहा है ‘‘संतान सैकड़ों वर्षों तक माता-पिता की सेवा करे, लेकिन फिर भी प्रसव वेदना, पालन और शिक्षण आदि में माता-पिता जिस कष्ट को सहते हैं, उसका बदला संतान नहीं चुका सकती। माता की महान ममता और पिता का परम स्नेह अमूल्य तथा अनुपम बताते हुए वेद भगवान का उद्घोष है कि पुत्र को अपने पिता का आज्ञाकारी तथा मां की संवेदनाओं-भावनाओं को समझने वाला होना चाहिए।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, भगवान श्रीगणेश, भीष्म पितामह, श्रवणकुमार, नचिकेता व भक्त पुण्डरीक आदि मातृ-पितृ भक्तों की आदर्श प्रेरणा बता रही है कि श्राद्घपर्व का दीप जलाने से ही हम सबका जीवन जगमगाएगा। इस महान त्योहार को मनाने से ही हमारा मस्तक गर्व से ऊंचा होगा। तभी हमारे जीवन की सार्थकता सिद्घ होगी। जीवित माता-पिता व बुजुर्गों के आशीर्वाद से ही जीवन में सुख-समृद्घि एवं शांति की प्राप्ति हो सकती है।
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