“आनंद” कैसे प्राप्त करे?
कई संतो ने कहा है कि ईश्वर में आनंद है, परन्तु ऐसा कहने से ऐसा लगता है कि ईश्वर व आनंद दो अलग-अलग है। कई संतो ने कहा है कि आनंद ही ईश्वर है, आनंद- ईश्वर से अलग नहीं है। आनंद आत्मा का स्वभाव है। सुख-दुःख, मन के कारण अहसास होते है। आत्मा सुखी व दुःखी नहीं होती, क्योंकि “आत्मा”, परमात्मा का अंश है, इसलिए आनंद स्वरूप है।
कभी सुख आता है, तो कभी दुःख आता है, परन्तु मानव में स्तिथ आत्म तो सुख दुःख से परे आनंद स्वरूप ही हैं। अतएव कह सकते हैं कि मानव स्वयं ही आनंद का स्त्रोत है फिर भी मानव वाह्य-संसार में आनंद की खोज करता है। आनंद किसी स्त्री को, किसी पुरूष को, कार या बंगले इत्यादि को प्राप्त करने में नहीं है, आनंद तो हमारे अंदर ही विराजमान है, जब अपने अंदर आनंद ढूढने का प्रयास करेंगे तो मिल जाएगा। आनंद मिलने पर सुख या दुख प्रभावित नहीं करते। आत्मज्ञान के लिए “योग” सहायक होता हैं। कर्मयोग और भक्ति योग भी सहायक होता हैं किन्तु कर्म और भक्ति दीर्घकालिक व्यवस्था हैं, जो पूर्णता पर ही फल देती हैं किन्तु योग के प्रत्येक चरण का फल अविलम्ब मिलता हैं।
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