कविता.
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(पंडित सुनीता शास्त्री-“मानस माधुरी”) |
धनुषधारी हे राम ... कहाँ हो?
धरती
अम्बर चीख रहे हैं,,
धनुधारी हे राम,,,,कहाँ हो ?
बंशी कहाँ बजाते बैठे,,
यशुदानन्दन श्याम,,,, कहाँ हो
धनुधारी हे राम,,,,कहाँ हो ?
बंशी कहाँ बजाते बैठे,,
यशुदानन्दन श्याम,,,, कहाँ हो
अपराधों
की सीमा टूटी,
मर्यादाएं
खूब लुटीं।
हुई
अंकुरित और पल्लवित,
बेलें
भी हैं बहुत कटीं ।
हृदय
विदीर्ण हुआ अब जाता,
हे
करूणा के धाम,,,,कहाँ हो ?
धनुधारी
हे राम,,,,,कहाँ हो ?
शबरी
को सुख बहुत दिया,
विदुरानी को तृप्त किया।
देवी अहिल्या भक्त सुदामा,
इनको भी था धन्य किया।
चक्र उठाओ तजो मुरलिया,
राधा जीवनप्राण,,,, कहाँ
हो ?
धनुधारी हे राम,,,,,कहाँ
हो ?
द्रुपदसुता
की लाज बचाई,
अब
क्यों करुणा तजे कन्हाई।
दुखियारी
कब तक सिसकेंगी,
मौन
हुए गिरिधर यदुराई।
सीता
के दुःख हरने वाले,
हे
रघुनन्दन राम,,,,कहाँ हो ?
धनुधारी
हे राम,,,,कहाँ हो ?
कण-कण
में हो तुम तो बसते,
दुष्टों हेतु,क्यों
दृष्टा बनते ।
चीत्कार और करुण पुकारें,
निर्बल का क्रन्दन ना सुनते।
नाश करो अब दुष्ट जनों का,
प्रगटो श्री भगवान,,,, कहाँ
हो ?
धनुधारी हे राम,,,, कहाँ
हो?
यशुदानंदन श्याम,,,, कहाँ
हो?
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