कौन हो तुम? राम या रावण!


कौन हो तुम? राम या रावण!

तुम्हारे अन्दर राम भी हैं रावण भी, कृष्ण भी और कंस भी, अच्छाई भी और बुराई भी, तुम्हारे भीतर ही इन दोनों का द्वंद चलता रहता है।

राम कहता है- जागो! अपने लक्ष्य की ओर बढ़ो।

रावण कहता है- अभी समय ही क्या हुआ है सोते रहो।

कृष्ण कहता है- समय अमूल्य है, इसे बर्बाद मत करो।

कंस कहता है- थोड़ा और मनोरंजन कर लो।

अच्छाई कहती है- सिर्फ अपने नहीं; सबके बारे में सोचो।

बुराई कहती है- अपना काम बनाओं, भाड़ में जाए दुसरे।

इनकी लड़ाई हर पल चलती रहती है। शुरू में दोनों के पास बराबर शक्ति होती है; लेकिन धीरे-धीरे ये शक्ति सामंजस्य बिगड़ने लगता है।

इन दोनों में से एक अधिक शक्तिशाली होने लगता है, दूसरे को दबाने लगता है। उस पर हावी होने लगता है। गिराने लगता है, और एक दिन वो इतना प्रभावी हो जाता है कि दूसरे वाले की, उसके सामने कोई हैसियत ही नहीं रह जाती।

हावी राम भी हो सकता है, रावण भी। कृष्ण भी और कंस भी। अच्छाई भी और बुराई भी!

पर पता है, हावी कौन होता?

वो जिसे तुम चाहते हो! जिसे तुम्हारी शह मिलती है। जिसे तुम सहयोग करते हो।

तुम अच्छी संगत करते हो, राम की शक्ति बढती है।

तुम बुरी संगत करते हो, रावण बलशाली हो जाता है।

तुम कामयाबी के लिए कठोर परिश्रम करते हो, कृष्ण को बल मिलता है।

तुम आलस में पड़े रहते हो, कंस शक्तिशाली बन जाता है।

तुम माता-पिता गुरु का आदर करते हो, अच्छाई को ताकत मिलती है।

तुम उनका निरादर करते हो, अपमान करते हो- बुराई को बल मिलता है।

तुम और अधिक वैसा बनते जाते हो, जैसा तुम साथ और जिसका सहयोग करते हो।

अपने भीतर चल रहे, इस द्वंद में तुम किसकी जीत चाहते?

उस रावण की; जिसके जीतने से तुम्हारी हार होगी या उस राम की जिसके जीतने से तुम विजयी होगे।

जिताओ अपने अन्दर के राम को, क्योंकि इस दुनिया में रावणों की कमी नहीं। कमी राम की है।

बनाओ खुद को राम और भागवान श्रीराम की तरह अपने अन्दर और बाहर की दुनियाँ से बुराई रुपी रावण का अंत कर दो!

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