ग्रह और उनकी वनस्पति-(ज्योतिषीय)


ग्रह और उनकी वनस्पति.
(ज्योतिषीय)

पृथ्वी से आकाश की ओर देखने पर आसमान में स्थिर दिखने वाले पिण्डों/छायाओं को नक्षत्र और स्थिति बदलते रहने वाले पिण्डों/ छायाओं को ग्रह कहते कहते हैं। ग्रह का अर्थ है पकडऩा। सम्भवता: अन्तरिक्ष से आने वाले प्रवाहों को धरती पर पहुँचने से पहले ये पिण्ड और छायायें उन्हें टी.वी. के अन्टीना की तरह आकर्षित कर पकड़ लेती है और पृथ्वी के जीवधारियों के जीवन को प्रभावित करती हैं। इसलिए इन्हें ग्रह कहा गया और इन्हे बहुत महत्त्व दिया गया।

नवग्रह.


भारतीय ज्योतिष मान्यता में ग्रहों की संख्या 9 मानी गयी है, जैसा निम्र श्लोक में वर्णित है-

सूर्यचंद्रों मंगलश्च बुधश्चापि बृहस्पति:।
शुक्र: शनेश्चरो राहु: केतुश्चेति नव ग्रहा:।।

अर्थात् सूर्य,चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि राहु और केतु ये नव ग्रह हैं। इनमें प्रथम 7 तो पिण्डीय ग्रह हैं और अन्तिम दो राहु और केतु पिण्ड रूप में नहीं हैं, बल्कि छाया ग्रह हैं।

ग्रहशान्ति.


ऐसी मान्यता है कि इन ग्रहों की विभिन्न नक्षत्रों में स्थिति का विभिन्न मनुष्यों पर विभिन्न प्रकार का प्रभाव पड़ता है, ये प्रभाव अनुकूल और प्रतिकूल दोनों होते हैं। ग्रहों के प्रतिकूल प्रभावों के शमन के अनेक उपाय बताये गये हैं, जिनमें एक उपाय यज्ञ भी है तथा निश्चित विधान के अनुसार ग्रहों से सम्बंधित वनस्पति की जड़ को धारण करना भी बताया गया हैं। सम्बंधित ग्रह के वार को सम्बंधित ग्रह के पत्तों का उबला पानी अपने स्नान में प्रयोग करना भी एक विधान हैं। इसकी विस्तृत जानकारी विद्वान ज्योतिषी से प्राप्त कर सकते हैं।

समिधाएँ.

यज्ञ द्वारा ग्रह शान्ति के उपाय में हर ग्रह के लिए अलग अलग विशिष्ट वनस्पति की समिधा हवन में प्रयोग की जाती है, जैसा निम्र श्लोक में वर्णित है..

अर्क: पलाश: खदिरश्चापामार्गोऽथ पिप्पल:।
औडम्बर: शमी दूव्र्वा कुशश्च समिध: क्रमात्।।

अर्थात अर्क (मदार), पलाश, खदिर (खैर), अपामार्ग (लटजीरा), पीपल, ओड़म्बर (गूलर), शमी, दूब और कुश; क्रमश: (नवग्रहों की) समिधायें हैं। - गरुण पुराण

इस तरह ग्रह अनुसार वनस्पतियों की सूची निम्र प्रकार है-


ग्रह
संस्कृत नाम
स्थानीय हिन्दी नाम
वैज्ञानिक नाम
सूर्य
अर्क
आक
कैलोट्रपिस प्रोसेरा
चन्द्र
पलाश
ढाक
ब्यूटिया मोनोस्पर्मा
मंगल
खादिर
खैर
अकेसिया कटेचू
बुध
अपामार्ग
लटजीरा
अकाइरेन्थस एस्पेरा
बृहस्पति
पिप्पल
पीपल
फाइकस रिलीजिओसा
शुक्र
औडबर
गूलर
फाइकस ग्लोमरेटा
शनि
शमी
छयोकर
प्रोसोपिस सिनरेरिया
राहु
दूर्वा
दूब
पाइनोडान डेक्टाइलान
केतु
कुश
कुश
डेस्मोस्टेचिया बाईपिन्नेटा


ग्रह शांति के यज्ञीय कार्यों में सही पहचान के अभाव में अधिकतर लोगों को सही वनस्पति नहीं मिल पाती, इसलिए नवग्रह वृक्षों को धार्मिक स्थलों के पास रोपित करना चाहिए ताकि यज्ञ कार्य के लिए लोगों को शुद्ध सामग्री मिल सके। यही नहीं, यह विश्वास किया जाता है कि पूजा-अर्चना के लिए इन वृक्ष वनस्पतियों के संपर्क में आने पर भी ग्रहों के कुप्रभावों की शांति होती है अतः नवग्रह वनस्पतियों के रोपण की महत्ता और बढ़ जाती है।

नवग्रह मंडल में ग्रहानुसार वनस्पतियों की स्थापना करने पर वाटिका की स्थिति निम्रानुसार होगी:-





नवग्रह वृक्षों की स्थापना में संभवतः इसी स्थिति क्रम का उपयोग करना सर्वाधिक उचित होगा। रोपण स्थल पर इन वनस्पतियों के बीच की दूरी इनके छत्र के अनुसार तथा उपलब्ध स्थान के अनुसार रखी जा सकती है।

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