परशुराम जन्मोत्सव. (अक्षय तृतीय)


परशुराम जन्मोत्सव.
(अक्षय तृतीय)

भगवान परशुराम का जन्मोत्सव देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान परशुराम ऋषि ऋचीक के पौत्र और जमदग्नि के पुत्र हैं। इनकी माता का नाम रेणुका था। वह भगवान शंकर के परम भक्त हैं और भगवान शंकर ने ही उन्हें अमोघ अस्त्र− परशु प्रदान किया था। हाथ में परशु धारण करने के कारण वह दुनिया में परशुराम के नाम से जाने गए।

भगवान परशुराम का जन्म वैशाख मास की शुक्ल तृतीया को हुआ था। इस दिन अक्षय तृतीया मनाई जाती है। अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण परशुराम की शक्ति का क्षय नहीं होता हैं। उन्हें राम के काल में भी देखा गया और कृष्ण के काल में भी। उन्होंने ही भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध कराया था। कहते हैं कि वे कलिकाल के अंत में उपस्थित होंगे। ऐसा माना जाता है कि वे कल्प के अंत तक धरती पर ही तपस्यारत रहेंगे।

आठ चिरंजीवियों में परशुराम भी.
परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, श्री हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, ऋषि मार्कंडेय सहित उन महापुरुषों में शामिल हैं, जिन्हें कलयुग तक अमर माना जाता है।

भगवान परशुराम किसी समाज विशेष के आदर्श नहीं है। वे संपूर्ण हिन्दू समाज के हैं और वे चिरंजीवी हैं। पौराणिक कथा में वर्णित है कि महेंद्रगिरि पर्वत भगवान परशुराम की तप की जगह थी। वह उसी पर्वत पर कल्पांत तक के लिए तपस्यारत होने के लिए चले गए थे।

21 बार क्षत्रिय विहीन की धरती

परशुराम ने अपने पिता की मौत और माता के अपमान का बदला लेने के लिए इस धरती से हैहय वंश के क्षत्रियों का 21* बार सर्वनाश किया था। परशुराम ब्राह्मण के कुल में पैदा हुए, लेकिन कर्म क्षत्रिय था। उनके क्रोध से मनुष्य, देवता और राक्षस सभी घबराते थे। दरअसल, एक बार उनके आश्रम में कुछ क्षत्रिय आए। उन लोगों को भूख लगी थी, उन्‍होने कुछ खाने को मांगा, तो माता रेणुका ने कामधेनु को बोला और उसने कई प्रकार के व्‍यंजन दे दिए।

उन लोगों को कामधेनु को देखकर आश्‍चर्य हुआ। उन्‍होने अपने राजा कर्तावीर्या सहस्‍त्रार्जुन के लिए उस गाय को खरीदने का प्रस्‍ताव रखा, लेकिन आश्रम के साधुओं ने नकार दिया। वे जबरन गाय को ले जाने लगे, तो परशुराम ने सभी को मार डाला और गाय को वापस आश्रम में ले आएं।

इसका बदला लेने के लिए राजा सहस्‍त्रार्जुन के बेटे ने जमदग्नि ऋषि को मार डाला। जब परशुराम अपने आश्रम में वापस आए, तो उन्‍होने अपने पिता को मृत पाया। उन्‍होने देखा कि उनके पिता के शरीर पर 21* घाव थे। इसके बाद परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रिय विहीन करने की शपथ ली और राजा के सभी पुत्रों को मार दिया।

गणेशजी को किया एकदंत.

सतयुग में जब एक बार गणेशजी ने परशुराम को शिव दर्शन से रोक लिया तो, रुष्ट परशुराम ने उन पर परशु प्रहार कर दिया, जिससे गणेश का एक दांत नष्ट हो गया और वे एकदंत कहलाए। त्रेतायुग में जनक, दशरथ आदि राजाओं का उन्होंने समुचित सम्मान किया। सीता स्वयंवर में श्रीराम का अभिनंदन किया।

कर्ण को श्राप.

द्वापर में उन्होंने कौरव-सभा में कृष्ण का समर्थन किया और इससे पहले उन्होंने श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध करवाया था। द्वापर में उन्होंने ही असत्य वाचन करने के दंड स्वरूप कर्ण को सारी विद्या विस्मृत हो जाने का श्राप दिया था। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्र विद्या प्रदान की थी।

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