एकता का बल.


एकता का बल.

एक समय की बात है| पंजाब के महाराणा रणजीत सिंह अपनी राजधानी लाहौर में थे कि उन्हें उनके गुप्तचरों ने खबर दी कि कबीली लुटेरों का एक दल सरहद के सूबे के पेशावर शहर में घुस गया है और उसे लूट रहा है|

महाराज रणजीत सिंह ने तुरंत इलाके के सेनापति को बुलाया और पूछा- “आपने पेशावर नगर की सुरक्षा क्यों नहीं की?” सेनापति ने कुछ संकोच से कहा- “महाराज, हमारे पास शहर में केवल 150 सैनिक थे और कबीली लुटेरों की संख्या डेढ़ हज़ार थी, फलतः हम उनका मुकाबला नहीं कर सके|”

महाराज रणजीत सिंह ने अपने साथ केवल डेढ़ सौ सिपाही लिए और वह पेशावर में लुटेरों की भीड़ पर टूट पड़े| उन सैनिकों की वीरता और तलवारों के हमले के सम्मुख कबीली लुटेरे टिक नहीं सके, वे भागते ही नजर आए| लौटकर महाराज ने सेनापति से पूछा- “मेरे साथ कितने सिपाही थे और कबीली कितने सिपाही थे?” सेनापति ने कहा- “महाराज, आपके साथ केवल डेढ़ सौ सिपाही थे और कबीले डेढ़ हज़ार थे|” महाराज ने कहा- “वे इतने पर भी हार गए, क्या कारण?” आपकी बहादुरी और रौबदाब के कारण| महाराज ने कहा- “नहीं, मेरे अकेले की बहादुरी से नहीं, पर सबकी मिली हुई बहादुरी के कारण| इसी एकता से एक-एक वीर दुश्मनों के सवा लाख के बराबर हो गया|”

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