साधना के विघ्न और निराकरण.


साधना के विघ्न और निराकरण.

निद्रा, तंद्रा, आलस्य, मनोराज, लय और रसास्वाद-ये छ: साधना के बड़े विघ्न हैं। ये विघ्न न आयें तो हर मनुष्य भगवान को प्राप्त कर ले।

जब हम माला का जाप करने बैठते हैं, तब मन कहीं से कहीं भागता है। फिर ‘मन नही लग रहा...’ ऐसा कहकर माला रख देते हैं। घर में भजन करने बैठते हैं, तो मंदिर याद आता है और मंदिर में जाते हैं, तो घर याद आता है। काम करते हैं तो माला याद आती है और माला करने बैठते हैं तब कोर्इ न कोर्इ काम याद आता है। यह एक व्यक्ति का प्रश्न नहीं, सबका प्रश्न है और यही मनोराज है।

दो दोस्त थे। आपस में उनका बड़ा स्नेह था। एक दिन वे खेत में घूमने के लिए निकले और विचारने लगे कि: ‘हम एक बड़ी जमीन लें और भागीदारी में खेती करें...’

एक ने कहा: ‘‘मैं टै्क्टर लाऊंगा। तू कुऑं खुदवाना।’’

दूसरा: ‘‘ठीक है। टै्क्टर खराब हो जाये तो मैं बैल रखूंगा।’’

पहला: ‘‘अगर तेरे बैल मेरे हिस्से के खेत में घुस जायेंगे तो मैं उन्हें खदेड़ दूंगा।’’

दूसरा: ‘‘क्यों? मेरे बैलों को क्यों खदेड़गा?’’

पहला: ‘‘क्योंकि मेरी खेती को नुकसान पहुंचायेंगे।’’

इस प्रकार दोनों में कहा-सुनी हो गर्इ और बात बढते-बढते मारपीट तक पहुंच गर्इ। दोनों ने एक-दूसरे का सिर फोड़ दिया। मुकदमा हो गया।

दोनो न्यायालय में गये। न्यायाधीश ने पूछा: ‘‘आपकी लड़ार्इ कैसे हुर्इ?’’

दोनों बोले: ‘‘जमीन के संबंध में बात हुर्इ थी।’’

‘‘कितनी जमीन और कहां ली थी?’’

‘‘अभी तक ली नहीं है।’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’

एक: ‘‘मेरे हिस्से में टै्क्टर आता था, इसके हिस्से में कुऑं और बैल।’’

न्यायधीश: ‘‘बैल कहां हैं?’’

दूसरा: ‘‘अभी तक खरीदे नहीं हैं।’’

जमीन ली नही है, कुऑं खुदवाया नहीं है, टै्क्टर और बैल खरीदे नहीं हैं फिर भी मन के द्वारा सारा बखेड़ा खड़ा कर दिया है और लड़ रहे हैं।

इसका नाम मनोराज है। माला करते-करते भी मनोराज करता रहता है, यह साधना का बड़ा विघ्न है।

कभी-कभी प्रकृति में मन का लय हो जाता है। आत्मा का दर्शन नही होता किन्तु मन का लय हो जाता है और लगता है कि ध्यान किया। ध्यान में से उठते हैं, तो जम्हार्इ आने लगती है। यह ध्यान नही, लय हुआ। वास्तविक ध्यान में से उठते हैं, तो ताजगी, प्रसन्नता और दिव्य विचार आते हैं किन्तु लय में ऐसा नही होता है।

कभी-कभी साधक को रसास्वाद परेशान करता है। साधना करते-करते थोड़ा-बहुत आनंद आने लगता है, तो मन उसी आनंद का आस्वाद लेने लग जाता है और अपना मुख्य लक्ष्य भूल जाता है।

कभी साधना करने बैठते हैं, तो नींद आने लगती है और जब सोने की कोशिश करते हैं तो नींद नही आती। यह भी साधना का एक विघ्न है।

तंद्रा भी एक विघ्न है। नींद तो नही आती किन्तु नींद जैसा लगता है। कितनी मालाएं घूमीं इसका पता नही चलता। यह सूक्ष्म निद्रा अर्थात तंद्रा है।

साधना करने में आलस्य आता है। ‘अभी नही, बाद में करेंगे...’ यह भी एक विघ्न है।

इन विघ्नों को जीतने के उपाय भी हैं।

मनोराज और लय का जीतना हो तो दीर्घ स्वर से ‘ॐ...’ का जप करना चाहिए।

स्थूल निद्रा को जीतने के लिये अल्पाहार और आसन करने चाहिए। सूक्ष्म निद्रा यानि तंद्रा को जीतने के लिये प्राणायाम करना चाहिए।

आलस्य को जीतना हो तो निष्काम कर्म करने चाहिए। सेवा से आलस्य दूर होगा एवं धीरे-धीरे साधना में भी मन लगने लगेगा। प्राणायाम और आसन भी आलस्य को दूर करने में सहायक है।

रसास्वाद से भी सावधान रहो एवं अपना विवेक सतत बनाये रखो। सदैव सजग और सावधान रहो। साधना के विघ्नों को पहचानकर उचित उपाय से उनका निराकरण करो और अपने लक्ष्य पथ पर निरन्तर आगे बढते रहो।

जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम कर लेना होगा। उसे इस युग की रफ्तार से बहुत आगे निकलना होगा। जैसे स्वप्न में मान-अपमान, मेरा-तेरा,अच्छा-बुरा दिखता है और जागने के बाद उसकी सत्यता नही रहती, वैसे ही इस जाग्रत जगत में भी अनुभव करना होगा। बस... हो गया हजारों वर्षो का काम पूरा। ज्ञान की यह बात हृदय में ठीक से जमा देने वाले कोर्इ महापुरूष मिल जाये तो हजारों वर्षो के संस्कार, मेरे-तेरे के भ्रम को दो पल में निवृत कर दें और कार्य पूरा हो जाय।

(’जीवन रसायन’ पुस्तक से)

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