धर्म के विषय में
आप क्या सोचते हैं?
आप क्या सोचते हैं?
क्या धर्म लोगों की स्वार्थपूर्ति का एक माध्यम है अथवा धर्म आत्मोन्नति का एक मार्ग है? आज के सन्दर्भ में यह एक विचारणीय प्रश्न है।
लोगों ने धर्म को मात्र अपनी स्वार्थपूर्ति का एक माध्यम बना कर रख दिया है। कुछ मूर्खलोग अपनी तरह-तरह की अनावश्यक मनोकामनाएं, इच्छाएँ भगवान पर लादने-थोपने के लिए उसके दरबार में जाते हैं। जो देवी देवता जितने लोगों को मनोकामना पूर्ति कर दें, वह उतना ही महान है अन्यथा वह बेकार हैं। कुछ चतुर लोग धन कमाने के लिए धर्म का मार्ग अपनाते हैं। तरह-तरह के स्वांग रचकर, भेष भरकर जनता के सामने अपने को योगी, सिद्ध पुरुष आत्मज्ञानी-ब्रह्मज्ञानी प्रदर्शित करते हैं। येन केन प्रकारेण जनता से धन वसूलकर उससे अंदर ही अंदर भोग विलासिता अध्याशी का जीवन जीना ही उनका असली धर्म है। प्रति वर्ष ऐसे लोगों की पोल खुलती है परन्तु पांच लोगों की दुकान बंद होती है, तो पचास नए लोगों की दुकान खुल जाती है।
कुछ अमीर व अहंकारी लोग अपना नाम-यश पाने के लिए धर्म को एक माध्यम बनाते हैं। वो ऐसी जगह दान देते हैं, जहां देने पर उनकी प्रसिद्धि होती है। ऊँचे व बडे भव्य मंदिरों की स्थापना, अपने नाम के पत्थर लगवाना, फोटो खिंचवाना, समाचार पत्रों में नाम का यशोगान, यही उनका असली धर्म है। कुछ राजनैतिक लोग वोट बैंक बनाने के लिए धर्म की शरण में जाते हैं। जिस संत के जितने अनुयायी, उससे उतना बडा वोट बैंक बन सकता है। धर्म को माध्यम बनाकर व्यक्ति अपना-अपना उल्लू सीधा करने की सोचता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि क्या धर्म लोगों की स्वार्थपूर्ति, इच्छापूर्ति का एक माध्यम भर है अथवा इससे उपर की कुछ है?
वास्तव में धर्म आत्मोन्नति, आत्मकल्याण का एक पवित्र मार्ग है। जो इस मार्ग पर चलना चाहें उन्हें धर्म के सही स्वरूप को खोजना चाहिए। अन्यथा व्यर्थ पाखण्ड़ों को ढोते-ढोते व्यक्ति व समाज अवसाद की स्थिति में डूबता जा रहा है। धर्म आत्मा के उध्दार का, आत्मा के उत्थान की एक सुव्यवस्थित पद्धति है, जिसका अनुसरण कर हम एक सुंदर समाज का निर्माण कर सकते हैं।
बडे दुख की बात है कि स्वार्थ व भोग्यवाद की तेज आंधी में पूरा समाज बहा जा रहा है कितनी दूर व कहां जाकर रूकेगा कुछ पता नहीं। जिनको भगवान ने थोड़ा सा भी विवके दिया हो या आत्मबल दिया हो, वो तुरन्त सावधान होकर आत्म निरीक्षण करें। अपने पैर दृढ़तापूर्वक धर्म के मार्ग पर बढ़ाने का प्रयास करें अन्यथा मूढ़ मान्यताओं के तेज दरिया में सब कुछ बह जाएगा, नष्ट भ्रष्ट हो जाएगा।
जिनको मनोकामना पूरी करनी हो, मनोकामना पूरी करने की सोचें। जिनको धन बटोरना हो धन बटोरे, जिनको पैर पुजवाने हो, पैर पुजवाएं, जिनको प्रतिष्ठा चाहिए, प्रतिष्ठा की सोचे। जिनको पेट पालना हो पेट पाले, नशाखोरी करनी हो, करें।
परन्तु जिनको आत्मा की उन्नति करनी हो वह गीदड़ो से घुले मिले नहीं। उनसे अलग होकर सनातन धर्म की स्थापना के लिए सत्य-संकल्पित होकर, र्इश्वर की आराधना करें। अपनी अन्तरात्मा की आवाज को पहचानें, साहस का अवलम्बन लें और समाज के सामने सदाचार, सद-कर्म और सद-व्यवहार का आदर्श प्रस्तुत करें।
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