अनुशासन से
संवरता हैं, जीवन.
बहता हुआ झरना बहुत आकर्षक होता है, लेकिन उससे बिजली पैदा करने के लिए उसके बहाव को बांधना ही पड़ता है। कुछ ऐसा ही हमारे जीवन के साथ भी है। अल्हड़ जीवन की खूबसूरती बेशक लाजवाब होती है, लेकिन उसे सार्थक दिशा देने के लिए अनुशासन जरूरी होता है। अनुशासन की प्रक्रिया ने मनुष्य जीवन को चार सिद्धांत दिए हैं- आहार, विहार, विचार और आचार। आहार का संबंध मनुष्य के खान-पान से है, विहार का उसके रहन-सहन से। इसी तरह, विचार का संबंध सोचने-समझने की शक्ति और उसके तरीके से है, जबकि आचार का संबंध जीवन के उस पहलू से है, जिसके तहत हम एक दूसरे से पेश आते हैं। कुछ लोग इन चार सिद्धांतों के साथ पांचवें सिद्धांत की भी चर्चा करते हैं। उनके मुताबिक पांचवां सिद्धांत व्यवहार है। हालांकि चार सिद्धांतों को मानने वाले लोग आचार के साथ ही व्यवहार को जुड़ा मानते हैं। मनुष्य जीवन से जुड़े इन सिद्धांतों को कुछ लोगों ने सिर्फ तीन के रूप में बांटकर देखा है। उनके मुताबिक ये सिद्धांत हैं विचार, उच्चार और आचार। विचार को वे सोच की शुचिता से जोड़ते हैं, उच्चार को संवाद से और आचार को आपके पेश आने के तौर-तरीके से। पतंजलि का योगसूत्र भी इसकी चर्चा करता है और मानता है कि चिंतन, संवाद और व्यवहार में समानता होनी चाहिए। बहरहाल, हम इन सिद्धांतों को अलग-अलग करके देखें, तो इनका अर्थ स्पष्ट हो जाएगा। आहार: इस बारे में अवधारणा है कि ज्यादा खाने से ज्यादा स्वस्थ रहा जा सकता है- यह अवधारणा गलत है। जरूरत से ज्यादा भोजन करना व्यक्ति को बीमार बनाता है। इसीलिए एक कहावत में कहा गया है कि जो दिन में एक बार भोजन करता है, योगी है; दो बार भोजन करने वाला भोगी है और तीन बार भोजन करने वाला रोगी। संतुलित आहार की व्याख्या करने वाले विद्वान पेट (उदर) को चार भागों में बांटते हैं। उनके अनुसार पेट का एक हिस्सा हमेशा खाली होना चाहिए। इसके दो हिस्सों में अन्न होना चाहिए, एक में पानी और चौथे में हवा। हर किसी को भोजन करते वक्त विविधता और संयम का ध्यान रखना चाहिए। खाने में विविधता का अभिप्राय है कि भोजन में जरूरी छहों स्वाद (कड़वा, कड़ा, तीखा, मीठा, खट्टा और नमकीन) और सातों रंग मौजूद होने चाहिए। हमारी जो पाचन शक्ति है, वह सूर्यास्त के बाद थोड़ी कमजोर पड़ जाती है। इसलिए ध्यान रखना चाहिए कि मांसाहारी भोजन ऐसे वक्त में न करें। विहार: बेहतर रहन-सहन का संबंध तेज गति से टहलने, तैरने और दौड़ने से भी है। यह नियमित होना चाहिए। टहलने की गति इतनी तेज हो कि 21 से 30 मिनट में तीन किलोमीटर की दूरी तय की जा सके। प्राणायाम और योग भी हमारे विहार का एक जरूरी हिस्सा हैं। विचार: दिन में दो बार 20 मिनट के लिए ध्यान लगाएं। नकारात्मक विचारों का त्याग करें। जैन धर्म में विचार के सिद्धांत का जो आधार है, वह है स्यादवाद या अनेकांत। इसके अनुसार सकारात्मक सोच नहीं होने के कारण ही मन में नकारात्मक विचार पैदा होते हैं। नकारात्मक सोच को हटाने के लिए हर किसी को चाहिए कि वह सकारात्मक सोच को अपने जीवन में जगह दे। यह भी मान लें कि दुर्भाग्य नाम की कोई भी चीज जिंदगी में नहीं होती। अगर कभी ऐसा वक्त आए, जब लगे कि दुर्भाग्य का साया आपका पीछा कर रहा है, तो इस अवसर को आप चुनौती की तरह स्वीकार करें। ऐसे ही वक्त में व्यक्ति कुछ नया और बिल्कुल अलग करके अपनी योग्यता को सिद्ध कर सकता है। आचार: एक-दूसरे के साथ पेश आने के कायदे को आचार कहते हैं, जिसका पालन हम सभी करते हैं। यह आचार संहिता किसी भी धर्म का आधार होती है। इसकी सबसे पहली व्याख्या मनु स्मृति में मिलती है। पतंजलि के योगसूत्र में भी यम और नियम के रूप में इसकी चर्चा है। आचार की सबसे सुंदर व्याख्या जैन धर्म में दिखती है, जहां अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म बताया गया है। शारीरिक हिंसा तो निश्चित ही पाप है, मगर वैचारिक रूप से की गई हिंसा उससे कम नहीं। हिंसा से बचने के लिए अच्छे व्यवहार को विस्तार देना चाहिए और सत्य के मार्ग को अपना लेना चाहिए।
(लेखक मूलचंद अस्पताल में सीनियर
कंसलटेंट और हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष हैं)
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