आत्मानुभूति की सीढ़ियाँ.
स्वामी विवेकानन्द ने आत्मा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए सात सीढ़ियाँ बतलायी हैं-
शम और दम।
मन को भीतर या बाहर भटकने से रोकना और इन्द्रियों को अपने केन्द्रों में लगा के रखना- इसी का नाम ‘शम और दम’ है। मन को बहिर्मुख होने से रोकना यह ‘शम’ कहलाता है और इन्द्रियों के बाहरी साधनों का निग्रह, इसी का नाम ‘दम’ है।
तितिक्षा (सहन-शीलता)।
दुख आता है तो आने दो। आये हुए दुखों को सहन करना, उन्हें रोकने या दूर करने का विचार भी न करना, तज्जन्य शोक या आवेग मन में पैदा भी न होने देना- इसी का नाम ‘तितिक्षा’ है।
उपरति।
इन्द्रियों के विषयों का विचार भी न करना।
श्रद्धा।
श्रद्धा मनुष्य का धर्म के प्रति और परमेश्वर के प्रति अमर्याद विश्वास है।
समाधान।
परमेश्वर में अपने मन को निरन्तर एकाग्र करने का अभ्यास।
मुमुक्षा।
एक रोटी के टुकड़े का, एक साँस भर हवा का, कपड़े-लत्ते का, देशाभिमान का, अपने देश का, अपने नाम का या अपनी कीर्ति का मनुष्य दास है। इनसे स्वतंत्र होने की अभिलाषा।
विषय निस्सार हैं और सुख-दुख कोई अन्त नहीं है। दुख के साथ सुख और सुख के साथ दुख लगा हुआ है। दुख के पीछे दौड़ना जिस तरह मनुष्य की कीर्ति के लिए अधःपतन है, उसी तरह सुख के पीछे दौड़ना भी अपना अधःपतन कर लेता है। मुमुक्षु को उन दोनों का ही तिरस्कार करना चाहिए।
नित्यानित्य विवेक।
प्रत्येक वस्तु अस्थिर है, यह सारा विश्व ही परिवर्तनशील पिण्ड है। बस वही एक है, जो कभी नहीं बदलता- वह है ईश्वर। और हम उसके जितने ही अधिक नजदीक जायेंगे, उतना ही कम हम में परिवर्तन या विकार होगा। और जब हम उस परमेश्वर तक पहुँच जावेंगे, उसके सामने जाकर खड़े होवेंगे तो हम प्रकृति को जीत लेंगे।
इन सात मान्यताओं को अपनी मनोभूमि में जमाने वाला, इन सात सीढ़ियों पर चढ़कर ऊपर उठने वाला मनुष्य आत्मानुभूति प्राप्त करता है और ईश्वर प्राप्ति का अधिकारी होता है।
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