कर्म-फल; धृतराष्ट्र का अंधत्व और विनाश.


कर्म-फल; धृतराष्ट्र का अंधत्व और विनाश.

कहते हैं कि हमारे पिछले जन्म के बुरे कर्म हमारा पीछा नहीं छोड़ते और किसी न किसी रूप में हमें उसकी सज़ा मिल ही जाती है। ऐसा ही कुछ हुआ था महाभारत के एक अहम पात्र धृतराष्ट्र के साथ। हम सब जानते हैं कि धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे; जो उनके पिछले जन्म के पाप थे। इतना ही नहीं धृतराष्ट्र गांधारी के पहले नहीं बल्कि दूसरे पति थे।

पिछले जन्म में धृतराष्ट्र, राजा तो थे किन्तु दुष्ट प्रवृत्ति और अत्याचारी थे। एक दिन अपने सैनिकों के साथ जंगल में शिकार के लिए गये थे। जब शिकार करके थक गये,तो एक वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए बैठ गये। उसी वृक्ष के समीप एक तालब में हंस अपने बच्चों के साथ तैर रहा था। राजा को उस हंस की यह उल्लास देखा न गया और उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि उस हंस की आँख फोड़ दे और उसके बच्चों को भी मार डाले। राजा की आज्ञा का पालन कर, सैनिकों ने बड़ी ही बेरहमी से उस हंस की आंखें फोड़ थी और उसके बच्चों को भी मार डाला। अपने इसी पाप के कारण उस राजा ने अपना अगला जन्म धृतराष्ट्र के रूप में लिया जो जन्म से नेत्रहीन पैदा हुए।

वहीं एक दूसरी कथा के अनुसार महाराज शांतनु और सत्यवती के दो पुत्र थे; विचित्रवीर्य और चित्रांगद। चित्रांगद बहुत ही कम आयु में युद्ध में मारे गए थे, जिसके पश्चात भीष्म पितामह ने विचित्रवीर्य का विवाह काशी की राजकुमारी अंबिका और अंबालिका से करा दिया था। विवाह के कुछ समय बाद ही विचित्रवीर्य की तबियत ख़राब रहने लगी। लम्बे समय तक बीमारी से जूझने के बाद उन्होंने भी दम तोड़ दिया। अब सत्यवती के सामने प्रश्न आ गया कि आखिर वंश आगे कैसे बढ़ेगा और सारा राज पाठ कौन संभालेगा। सत्यवती, महर्षि वेदव्यास के पास अपनी समस्या लेकर गयी। उसकी व्यथा सुनकर महर्षि सहांयता हेतु तैयार हो गए और उनकी दिव्य शक्ति से अम्बिका और अम्बालिका दोनों को पुत्र प्राप्त हुए। कहतें है; जब वेदव्यास अम्बिका और अम्बालिका को अपनी दिव्य शक्ति प्रदान कर रहे थे तो अम्बिका ने डर से अपनी आँखें बंद कर ली थी इसलिए उसकी संतान यानी धृतराष्ट्र नेत्रहीन पैदा हुए। वहीं दूसरी ओर अम्बालिका का शरीर भय से पीला पड़ गया था इसलिए उसे पुत्र के रूप में पांडू प्राप्त हुए, जो जन्म से ही कमज़ोर थे।

धृतराष्ट्र का विवाह गांधार नरेश सुबाला की पुत्री गांधारी से हुआ, जब गांधारी को पता चला कि उसका पति नेत्रहीन है, तो पत्नी धर्म निभाते हुए उसने भी अपनी आँखों पर पट्टी बांध ली और आँखें रहते हुए भी आजीवन नेत्रहीन बनी रहीं। गांधारी और धृतराष्ट्र के 100 पुत्र और एक पुत्री हुई। इन सब में दुर्योधन सबसे ज्येष्ठ था।

गांधारी के इस विवाह के पूर्व की घटना के अनुसार उसकी कुंडली में विवाह-दोष होने के कारण उसका विवाह पहले एक बकरे से कराया गया था और बाद में उस बकरे की हत्या कर दी गई थी। जब धृतराष्ट्र को इस बारे में पता चला तो वह बहुत क्रोधित हुआ। उसने राजा सुबाला और उसके सभी सौ पुत्रों को बंदी बना लिया और उन्हें कारागार में डाल दिया। धृतराष्ट्र ने उन्हें कारगर में तरह तरह की यातनाएं दीं। वह उन्हें खाने को नहीं देता और जब देता भी था; तो केवल एक मुठ्ठी चावल। भूख से तड़प कर, एक-एक करके उसके पुत्रों की मृत्यु हो गयी। लेकिन उसका सबसे छोटा पुत्र शकुनि अभी जीवित था। ऐसा इसलिए क्योंकि धृतराष्ट्र द्वारा दिया हुआ वह एक मुठ्ठी चावल, सुबाला अपने पुत्र शकुनि को खिला देता ताकि वह ज़िंदा रह सके और इस कष्ट का बदला ले सके। जब सुबाला का अंतिम समय आया तब उसने अपने पुत्र शकुनि को आदेश दिया कि वह उसकी रीढ़ की हड्डी के पासे बनवाकर अपने पास रखें। अपनी अंतिम इच्छा के रूप में सुबाला ने धृतराष्ट्र से शकुनि की रिहाई मांगी; जो उसने स्वीकार कर ली थी। बाद में शकुनि, गांधारी के पास आकर रहने लगा और धीरे धीरे कौरवों और पांडवों के बीच दरार पैदा करने लगा। जब कौरव और पाण्डव के बीच जुए का खेल हो रहा था, तब उसमें सुबाला के रीढ़ की हड्डी का बना पासा ही उपयोग हुआ था।

धृतराष्ट्र के अंधत्व और विनाश के लिए अन्य कारणों सहित ये घटनाये प्रमुख मानी जाती हैं।

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