वैष्णों देवी.

वैष्णों देवी.

त्रेता युग में दुष्ट राक्षसों से परेशान देवताओं की रक्षा के लिए एक दैवीय कन्या का अवतरण हुआ, जो "त्रिकुटा" कहलाई। उस कन्या ने वैष्णव धर्म का प्रसार किया और कालान्तर में "वैष्णो" कहलाई। बाद में पिता की आज्ञा लेकर वे तपस्या करने चली गयीं और श्री विष्णुजी की आराधना करने लगीं।

श्रीराम, सीताजी की खोज में वहां पहुंचे, और उन्होंने त्रिकुटा से भेट कर तपस्या का कारण पूछा। तब त्रिकूटा ने श्रीरामजी को बताया कि वे उन्हें मन से पति रूप में स्वीकार कर चुकी हैं और उन्हें ही प्राप्त करने के लिए तपस्या कर रही हैं। श्रीराम ने उस अवतार में एक पत्नीव्रत धारण किया था, इसलिए द्विधा में पड़ गए, फिर भी कहा कि वे भविष्य में उनके सम्मुख आयेंगे और यदि वे उन्हें पहचान सकीं, तो यह प्रस्ताव स्वीकार कर लेंगे।

रावण बध के पश्चात लंका से लौटते हुए श्रीराम, त्रिकुटा के समक्ष एक वृद्ध सन्यासी के रूप में आये, जब वे उन्हें न पहचान सकीं, तब अपने असल रूप में आकर श्रीराम ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे कलियुग में कल्कि अवतार के रूप में प्रकट होंगे, जब उनसे विवाह करेंगे। तब तक वे हिमालय के त्रिकूट पर्वत पर रहें , और भक्त जनों की मनोकामनाएं पूर्ण करें।

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