भगवान राम ने एक
चीज कभी नहीं छोड़ी
आप भी नहीं छोड़िएगा.
(सुधांशु जी महाराज)
धर्म को अपने हृदय में बसाकर हमें जीवन यापन करना चाहिए। दुनिया में जितने भी धर्म स्थल हैं, आस्था के केन्द्र हैं अथवा धर्म हैं, उनमें से कोई भी धर्म हिंसा की बात नहीं कहता। सभी अहिंसा के प्रशंसक हैं। अहिंसा की पूजा करने का संदेश सबने उन्मुक्त हृदय से प्रसारित किया। भगवान श्रीराम ने यही बताया कि हमारे यहां तो दुश्मन के लिए भी नफरत नहीं बरती जाती। उसके लिए भी एक सीमा तक क्रोध होता है।
इसलिए यहां मैं यह कहना चाहूंगा कि कोई भी धर्म अपने अनुयायी को वैर विरोध नहीं सिखाता बल्कि प्रेमभाव के सभी समर्थक हैं। इसलिए कहा जाता है मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना। सबसे प्रेम करो, सब का सम्मान करो, सबके दुःखों में पीड़ाओं में साथ दो। यही धर्म का संदेश है। ईश्वर धर्म की परीक्षा कई रूपों में लेता है जो आम तौर पर मनुष्य की समस्याओं के रूप में प्रदर्शित होती हैं। समस्याएं कई प्रकार की होती हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की परीक्षा भी तो इतनी कठिन हो गई थी कि उनके गुरु उनके पिता यहां तक कि उनकी माता ने भी धर्म मर्यादा भंग करने का उनसे अनुरोध किया परन्तु मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने मर्यादा कभी भंग नहीं की। वे सदैव ही धर्म की रक्षा करते रहे। फलस्वरूप उन पर क्या-क्या विपत्तियां आईं यह तो संसार जानता है।
इसी प्रकार की एक घटना तब घटी जब श्री लक्ष्मण शक्तिबाण से आहत हो कर मृत्यु शैय्या पर थे तथा सुषैण वैद्य को लंका से बुलाया गया था। उस समय वचन की रक्षा के लिए राम सुषैण के पास नगर में नहीं गए। लेकिन धर्म ने उनका साथ दिया और हनुमान ही सुषैण को खुद ही राम के पास ले आए। इस तरह यह सीख मिलती है कि धर्म का पालन करने पर धर्म भी समय पर आपकी रक्षा करता है।
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