ऐसे दिन बिताते हैं, उनके अंदर प्रेम और मधुरता होती है.


ऐसे दिन बिताते हैं,
उनके अंदर प्रेम और मधुरता होती है.
(सुधांशु जी महाराज)

जो इंसान अन्दर से शांत है, संतुष्ट है, उसके चेहरे पर मुस्कराहट का फूल खिलता है। उसके जीवन से संतोष की सुगंध आती है। उसे बाहर की दुनिया की हर चीज गुनगुनाती नजर आती है।

उसे हर पल आनंद की अनुभूति होती है। क्योंकि वह अपने अन्तःकरण से जुड़ा हुआ है। दूसरी तरफ जो इंसान बाहर का ध्यान रखता है, अन्तःस्थ से जिसका कोई सम्बन्ध नहीं है वह उद्विग्न और असंतुष्ट रहता है।

उसे हंसते-मुस्कराते फूलों के बीच में भी निराशा हाथ लगती है। उसे फूलों की संगति भी प्रसन्नता नहीं देती। जो अन्दर से व्याकुल है उसे बाहर का संगीत भी आनन्दित नहीं करता। यद्यपि हम दृष्टा बनकर दृश्य तो देखें, लेकिन अदृश्य के लिए, शांति के लिए आन्तरिक यात्रा जरूरी है।

प्रेम और शांति को अपने अन्दर खोजें। हर दिन को उत्सव बनाने का प्रयास करें। उत्साह के साथ हर दिन का प्रारंभ करें और प्रेम, प्रसन्नता के साथ समापन। जो व्यक्ति इस तरह अपना जीवन-यापन करता है उसके अन्दर प्रेम, मधुरता, सौम्यता, शालीनता, शिष्टता, सहजता, उदारता, कर्मठता, शांति और संतोष दिखाई देता है।

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