ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी भी उन्नति नहीं कर पाता है.


ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी भी
उन्नति नहीं कर पाता है.
(सुधांशु जी महाराज)

प्रेम और शांति को अपने अन्दर खोजें। हर दिन को उत्सव बनाने का प्रयास करें। उत्साह के साथ हर दिन का प्रारंभ करें और प्रेम एवं प्रसन्नता के साथ समापन करें। जो व्यक्ति इस तरह अपना जीवन-यापन करता है उसके अन्दर प्रेम, मधुरता, सौम्यता, शालीनता, शिष्टता, सहजता, उदारता, कर्मठता, शांति और संतोष दिखाई देता है।

अब एक मां को ही लीजिए, उनका अपनी संतान से आन्तरिक, अतिशय और अनन्य प्रेम होता है। मां अपने बच्चे के लिए भारी से भारी काम कर गुजरती है और उसे तनिक एहसास भी नहीं होता। अपने बच्चे के कार्य को करते समय उसे थकावट भी नहीं होती। जब कोई महिला बाजार से पांच किलो सामान लाती है तब उसे थोड़ी दूर चलने पर ही थकावट हो जाती है। लेकिन जिस समय अपने पन्द्रह किलो के बेटे को गोद में उठाकर यात्रा करती है उस समय उसे थकावट का एहसास नहीं होता।

क्योंकि वह उस समय अन्तःस्थ से जुड़ी हुई है। अपने बेटे के लिए उसे बोझ भी बोझ नहीं लगता बल्कि अन्दर से प्रेम उभरता है, उत्साह आता है। इसी प्रकार अगर कोई व्यक्ति दुःखी होकर झुंझलाहट में जीवित रहता है या जिंदगी को बोझ समझता है। तो वह जीवन यापन तो करता है लेकिन उसे जीवन का आनंद नहीं आता। क्योंकि वह अपने अन्तर से नहीं जुड़ा होता।

दृष्टा होकर भी अदृश्य की खोज नहीं करता, उसका ध्यान नहीं करता और उसका जीवन निराशा में उलझकर रह जाता है। फिर कोई उसका व्यवहारिकता से हाल-चाल भी पूछे तो जवाब मिलता है बस कट रही है जैसे-तैसे। उसके कथन से ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे वह सेन्ट्रल जेल में बैठा है। उसके शब्द ही कुछ ऐसे होते हैं कुछ कट गई और कुछ कट जाएगी।

कुछ लोग दुनिया में ऐसे भी होते हैं जो अदृश्य से जुड़कर जीवन की यात्रा का आनन्द लेते हैं। वे लोग जीवन के ऊबड़-खाबड़ रास्तों में निराश नहीं होते बल्कि खेल-खेल में जिन्दगी के हर मोड़ से गुजर जाते हैं। वे अपने हर कर्म को पूजा समझकर करते हैं। पूजा को कर्म नहीं बनाते अर्थात् पूजा को जीवन का साधन नहीं बनाते।

आज के समय में तो बच्चों को भी खेल-खेल में शिक्षा दी जाती है। अगर उनकी शिक्षा उन पर बोझ बन जाए तो विकास रुक जाता है। जो व्यक्ति कर्म को बोझ मानकर करता है वह अपने जीवन में विकास नहीं करता।

कोई टिप्पणी नहीं: