गुरु-शुक्र ग्रह के अस्त होने पर.




गुरु-शुक्र ग्रह 
के अस्त होने पर.


शास्त्रों के अनुसार गुरु-शुक्र अस्त में विवाह, यज्ञोपवीत, राज्याभिषेक, बावड़ी, मुंडन, मंदिर और गृह निर्माण करना, व्रत-उपासना, वधू प्रवेश, मंत्र दीक्षा, कर्ण छेदन और अन्य शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।

सौर मंडल में ग्रह हमेशा घूमते रहते हैं। जब भी कोई ग्रह परिक्रमा करते हुए सूर्य के निकट आ जाता है तो उसे अस्त ग्रह कहते हैं।

अगर जो कार्य पूर्वनिर्धारित हैं। उनमें दोष नहीं लगता है। ऐसे कार्य मुख्यतः अन्नप्राशन (6 माह में होता है), नामकरण (11 वें दिन में होता है) आदि अपवाद की श्रेणी में आते हैं। ये कार्य आप कर सकते हैं।

सर्वार्थ चिंतामणी व सारावली के अनुसार जन्मपत्रिका में शुक्र अस्त हो तो अस्त ग्रह की दिशा कष्टप्रद होती है। शुक्र विवाह, पत्नी, काम, सौन्दर्य व कला का कारक हैं।

अतः जब कुंडली में शुक्र असत् होता है तो जातक के वैवाहिक जीवन में वैचारिक मतभेद व तनाव होते हैं। यह सूर्य के शत्रू भी हैं और अपनी शुभता खोकर अनिष्ट परिणाम अधिक देते हैं। ऋर्षि वशिष्ट के अनुसार शुक्र अस्त में पांच दिन पूर्व और उदय होने से पांच दिन पूर्व तक मुहूर्त न रखें।

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