गण विचार.


गण विचार.

विवाह के समय कुंडली मेलापक के अंतर्गत अष्टकूट मेलापक में, एक कूट “गण” हैं, उसमें मनुष्‍य को तीन गणों में बांटा गया है – देव गण, मनुष्‍य गण और राक्षस गण। तीनों गणों में सर्वश्रेष्‍ठ गण ‘देव’ को माना जाता है। ज्‍योतिषशास्‍त्र के अनुसार देव गण में जन्‍म लेने वाले व्‍यक्‍ति के स्‍वभाव में देवों के समान गुण होते हैं। ये व्‍यक्‍ति देवताओं के समान गुणों के साथ ही जन्‍म लेते हैं।

मगर, राक्षस गण के जातक भी किसी से कम नहीं होते हैं। वे साहसी और मजबूत इच्छाशक्ति वाले होते हैं। उनके जीने का तरीका स्वच्छंद होता है। उन्हें सीमाओं में रहना नहीं आता है। हालांकि, यदि कुंडली में ग्रहों की स्थिति अच्छी हो, तो ऐसे जातक भी समाज में नाम कमाते हैं।


देव गण वाले जातक का सामान्य लक्षण.

सुंदरों दान शीलश्च मतिमान् सरल: सदा।
अल्पभोगी महाप्राज्ञो तरो देवगणे भवेत्।।


इस श्लोक में कहा गया है कि देवगण में उत्पन्न पुरुष दानी, बुद्धिमान, सरल हृदय, अल्पाहारी व विचारों में श्रेष्ठ होता है। देवगण में जन्‍म लेने वाले जातक सुंदर और आकर्षक व्‍यक्‍तित्‍व के होते हैं। इनका दिमाग काफी तेज होता है। ये जातक स्‍वभाव से सरल और सीधे होते हैं। दूसरों के प्रति दया का भाव रखना और दूसरों की सहायता करना इन्‍हें अच्‍छा लगता है। जरूरतमंदों की मदद करने के लिए इस गण वाले जातक तत्‍पर रहते हैं।

मनुष्य गण वाले जातक सामान्य लक्षण.

मानी धनी विशालाक्षो लक्ष्यवेधी धनुर्धर:।
गौर: पोरजन ग्राही जायते मानवे गणे।।


इसमें ऐसा कहा गया है कि मनुष्य गण में उत्पन्न पुरुष मानी, धनवान, विशाल नेत्र वाला, धनुर्विद्या का जानकार, ठीक निशाने बेध करने वाला, गौर वर्ण, नगरवासियों को वश में करने वाला होता है। ऐसे जातक किसी समस्या या नकारात्मक स्थिति में भयभीत हो जाते हैं। परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता कम होती है।

राक्षस गण के वाले सामान्य लक्षण.

उन्मादी भीषणाकार: सर्वदा कलहप्रिय:।
पुरुषो दुस्सहं बूते प्रमे ही राक्षसे गण।।


इस श्लोक में राक्षस गण में उत्पन्न बालक उन्मादयुक्त, भयंकर स्वरूप, झगड़ालु, प्रमेह रोग से पीड़ि‍त और कटु वचन बोलने वाला होता है। मगर, इसके बावजूद भी राक्षस गण के जातकों में कई अच्छाइयां होती हैं। ये अपने आस-पास मौजूद नकारात्मक शक्तियों को आसानी से पहचान लेते हैं। भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास इन्हें पहले ही हो जाता है। इनका सिक्स सेंस जबरदस्त होता है। ये परिस्थितियों से डरकर भागते नहीं हैं, बल्कि उनका मजबूती से मुकाबला करते हैं।

इन नक्षत्रों में बनता है - ‘देव गण’.

जिन जातकों का जन्म अश्विनी, मृगशिरा, पुर्नवासु, पुष्‍य, हस्‍त, स्‍वाति, अनुराधा, श्रावण, रेवती नक्षत्र में होता है, वे देव गण के जातक होते हैं।

मनुष्य गण के नक्षत्र.

जिन जातकों का जन्म भरणी, रोहिणी, आर्दा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, पूर्व-षाढ़ा, उत्तर-षाढा, पूर्व भाद्रपद, उत्तर भाद्रपद में होता है, वे मनुष्य गण के जातक होते हैं।

राक्षस गण के नक्षत्र.

जिन जातकों का जन्म अश्लेषा, विशाखा, कृत्तिका, चित्रा, मघा, ज्येष्ठा, मूल, धनिष्ठा, शतभिषा नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग राक्षण गण के अधीन माने जाते हैं।

किस गण से हो विवाह.

विवाह के समय मिलान करते हुए ज्‍योतिषाचार्य गणों का मिलान भी करते हैं। गणों का सही मिलान होने पर दांपत्‍य जीवन में सुख और आनंद बना रहता है। देखिए किस गण के साथ उचित होता है मिलान

वर-कन्‍या का समान गण होने पर दोनों के मध्‍य उत्तम सामंजस्य बनता है। ऐसा विवाह सर्वश्रेष्ठ रहता है।

वर-कन्या देव गण के हों तो वैवाहिक जीवन संतोषप्रद होता है। इस स्थिति में भी विवाह किया जा सकता है।

वर-कन्या के देव गण और राक्षस गण होने पर दोनों के बीच सामंजस्य नहीं रहता है। विवाह नहीं करना चाहिए।


(सम्पूर्ण कुंडली मिलान के लिए "मेलापक" विषय पर पूर्ण लेख पूर्व में प्रस्तुत किया जा चूका हैं. जिज्ञासु वर्ग उसका अध्ययन कर सकते हैं.)

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