कर्म से भाग्य को
बदला जा सकता हैं.
इस दुनिया में कर्म को मानने वाले लोग कहते हैं, भाग्य कुछ नहीं होता और भाग्यवादी लोग कहते हैं, किस्मत में जो कुछ लिखा होगा, वही होकर रहेगा। इंसान, कर्म और भाग्य इन दो बिंदुओं की धुरी पर घूमता रहता है और एक दिन इस जग दे प्रयाण कर जाता हैं।
भाग्य और कर्म को अच्छे से समझने के लिए पुराणों में एक कहानी का उल्लेख मिलता है। एक बार देवर्षि नारदजी बैकुंठ धाम गए। उन्होंने भगवान विष्णु को नमन किया। नारदजी ने श्रीहरि से कहा, ‘‘प्रभु! पृथ्वी पर अब आपका प्रभाव कम हो रहा है। धर्म पर चलने वालों को कोई अच्छा फल नहीं मिल रहा, जो पाप कर रहे हैं, उनका भला हो रहा है।’’
तब श्रीहरि ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है, देवर्षि! जो भी हो रहा है, सब नियति से ही हो रहा है।’’
नारदजी बोले, ‘‘मैं तो देखकर आ रहा हूं, पापियों को अच्छा फल मिल रहा है और भला करने वाले, धर्म के रास्ते पर चलने वाले लोगों को बुरा फल मिल रहा है।’’
भगवान ने कहा, ‘‘कोई ऐसी घटना बताओ।
भाग्य और कर्म को अच्छे से समझने के लिए पुराणों में एक कहानी का उल्लेख मिलता है। एक बार देवर्षि नारदजी बैकुंठ धाम गए। उन्होंने भगवान विष्णु को नमन किया। नारदजी ने श्रीहरि से कहा, ‘‘प्रभु! पृथ्वी पर अब आपका प्रभाव कम हो रहा है। धर्म पर चलने वालों को कोई अच्छा फल नहीं मिल रहा, जो पाप कर रहे हैं, उनका भला हो रहा है।’’
तब श्रीहरि ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है, देवर्षि! जो भी हो रहा है, सब नियति से ही हो रहा है।’’
नारदजी बोले, ‘‘मैं तो देखकर आ रहा हूं, पापियों को अच्छा फल मिल रहा है और भला करने वाले, धर्म के रास्ते पर चलने वाले लोगों को बुरा फल मिल रहा है।’’
भगवान ने कहा, ‘‘कोई ऐसी घटना बताओ।
नारदजी की बात सुन लेने के बाद प्रभु बोले, यह सही ही हुआ। जो चोर गाय पर पैर रखकर भाग गया था उसकी किस्मत में तो एक खजाना था, लेकिन उसके इस पाप के कारण उसे केवल कुछ मोहरें ही मिलीं।
वहीं, उस साधु को गड्ढे में इसलिए गिरना पड़ा क्योंकि उसके भाग्य में मृत्यु लिखी थी, लेकिन गाय को बचाने के कारण उसके पुण्य बढ़ गए और उसकी मृत्यु एक छोटी-सी चोट में बदल गई। इंसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है। इंसान को कर्म करते रहना चाहिए, क्योंकि कर्म से भाग्य बदला जा सकता है।
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