कलियुग का वास
बेईमानी के धन में होता
हैं.
जब कोई सद्गुरु या तपस्वी ब्राम्हण हमें आर्शीवाद देता है, हम तभी संसार सागर से मुक्त हो जाते हैं। बेईमानी से कमाए धन में कलयुग वास करता है। यह उद्गार को संत चिन्मयानंद बापू ने व्यक्त किए थे। वे खेल परिसर में चल रही श्रीमद भागवत कथा के दौरान अमृतवर्षा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि यदि परमात्मा से मिलना है तो परोपकार करें। रामचरित मानस का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जो फल राजा दशरथ को प्राप्त नहीं हुआ, वह जटायु को मिल गया। उनका अंतिम संस्कार साक्षात प्रभु राम ने किया। क्योंकि उन्होंने निस्वार्थ परहित में अपने प्राण त्यागे थे। कथा को महाभारत की तरफ मोड़ते हुए उन्होंने कहा कि परीक्षित का जन्म होते ही पांडव स्वर्गारोहण को चले गए। एक दिन परीक्षित भ्रमण करने निकले तो मुलाकात कलयुग से हुई। वे उसे मारने दौड़े तो वह शरणागत हो गया। उन्होंने उसे माफ किया, लेकिन कलयुग बेईमानी से कमाए धन में वास करता है। एक दिन राजा परीक्षित ने अपने भंडार से जरासंघ का मुकुट पहना और कलयुग उनके सिर पर सवार हो गया। उन्होंने समीक ऋषि के गले में मरा सांप डाल दिया। इससे नाराज ऋषि ने उन्हें सात दिन में मृत्यु का श्राप दे दिया। परीक्षित बेटे जन्मेजय को राजपाठ देकर गंगा तट पर चले गए। यहां शुकदेव ऋषि से पूछा कि जिस मनुष्य की मृत्यु 7 दिन में होना है उसकी मुक्ति कैसे होगी। ऋषि ने राजा के सिर पर हाथ रख कहा कि 7 दिन श्रीमद भागवत सुनो।
(संत चिन्मयानंदजी बापू)
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