चतुर व्यक्ति आपकी
भावुकता का लाभ लेते हैं.
आप अपनी पत्नी के साथ कपड़े की दूकान पर बैठे हुए हैं। दूकानदार भांति-भांति की रंग बिरंगी साड़ियां दिखा रहा है। उनकी प्रशंसा भी करता जाता है। कभी खुद ही साड़ी बांधकर नाटकीय अभिनय करता जाता है। आप मन्त्रमुग्ध से इस नाटक शो को देख रहे हैं।
वह कहता है, ‘‘बहिन जी, जरा देखिये तो कितनी खूबसूरत साड़ी है। आपके रंग से बिल्कुल मैच करती है। इसे पहन कर आप कितनी आकर्षक लगेंगी। खास तौर पर यह आपके लिये ही चुन कर रखी थी। कपड़े के लिहाज से बेहतरीन चीज है, कितना बारीक, मुलायम रेशम जैसा।
आपकी पत्नी अपनी प्रशंसा सुनकर भावुकता में बह जाती हैं। उन्हें थोड़ी देर के लिये अपनी सुन्दरता पर मिथ्या गर्व हो उठता है। वे भाव-विभोर हो आपकी तरफ बांकी अदा से देखती है। उधर चतुर दूकानदार आपकी भावुकता से अनुचित लाभ उठाकर एक कीमती साड़ी पैक कर लम्बा बिल बना देता है।
आप खुशी-खुशी उसे लेते हैं। आपकी पत्नी तो अभी तक अपनी सुन्दरता, प्रशंसा और भावुकता में डूबी हुई हैं। आप समझ रहे हैं कि अच्छा सौदा किया।
लेकिन जब आप दूकान के काउन्टर पर पैसा चुकाने के लिए पर्स खोलते हैं तो देखते-देखते वह बिल्कुल खाली हो जाता है। विवेक और बुद्धि जागते हैं और दूकान से निकलते-निकलते आप महसूस करते हैं कि भावना में बह कर आप फिजूलखर्ची कर बैठे हैं। आपके पास घर वापिस आने तक के लिये पैसे नहीं बचे हैं। वस, आप भारी मन से धीरे-धीरे पैदल ही बाजार से घर आते हैं। आपकी भावुकता महीने भर तक आपको भूखा मारती है।
मेलों में छोटे बच्चे रंगीन खिलौनों, छोटी-छोटी चीजों, मिठाइयों, टॉफी आदि पर भावुकता में बह कर आपको उन क्षणिक चीजों को खरीदने पर विवश कर देते हैं। आप बच्चे की अनुनय विनय, ललक और वेदना को संभाल नहीं पाते। उसके रोने-धोने से पिघल उठते हैं। स्नेह और वात्सल्य आपके विवेक को अन्धा कर देता है। बस, आप ऐसी निरर्थक वस्तुएं खरीद बैठते हैं जिनसे कोई लाभ नहीं।
सिनेमा में भड़कीले दृश्य, आकर्षक चित्रों के विज्ञापन, सुरीले गाने, वासना को उद्दीप्त करने वाले प्रचार के नये तरीके, अभिनेत्रियों की अश्लील मुद्राएं, तरह-तरह की अश्लील भाव-भंगिमाएं भावनाप्रधान दर्शकों की भावुकता को इतना भड़का देती हैं, इस हद तक उद्दीप्त कर देती हैं कि वे अपने सारे पैसे सिनेमा में ही फूंक आते हैं। फिल्म निर्माता दर्शकों की भावुकता से ही पैसा कमाते हैं, वर्ना ठण्डे दिल से देखा जाय तो सब फिल्मों की एक ही रोमांटिक कहानी और एक ही प्रकार का अश्लील संगीत होता है। दो फिल्म देखो तो वही गन्दे भाव, चार देखो तो वही अश्लील संगीत और दस देखो तो वही भड़कीले गाने। तरुण लोग तो इतने भावुक होते हैं कि विवेक-बुद्धि खोकर एक-एक फिल्म को कई-कई बार देखते हैं। सिनेमा में बैठे-बैठे वे झूंठे भावना-जगत में विहार करते रहते हैं, गन्दे गीत मन ही मन गुनगुनाते रहते हैं, नग्न चित्रों की चर्चायें किया करते हैं। सिनेमा वाले कामोत्तेजक और हीन भावनाओं को भड़काकर हमारा धन लूटते हैं। हम शान्ति से सोच ही नहीं पाते कि हम गहराई से विचार न कर व्यर्थ ही पैसा बहा रहे हैं। यह अति भावुकता के ही दुर्गुण हैं, जिनसे सावधान रहना जरूरी है।
अश्लील पुस्तकें, सस्ते उत्तेजक उपन्यास और कामुकता विषयक समस्त श्रृंगार प्रधान साहित्य धड़ाधड़ क्यों बिकता है? ऊंचे मूल्य पर क्यों खप जाता है? बाजारू गीतों से भरी दस-दस बीस-बीस पृष्ठों की सैकड़ों पुस्तकें रंगीन तबियत के लोग हृदय से क्यों चिपकाये फिरते हैं? इसका एकमात्र कारण मनुष्य की भावुकता है। वह श्रृंगार-भावना में विवेक, बुद्धि, श्रेष्ठता या सज्जनता, सन्मार्ग-कुमार्ग सब कुछ खो बैठता है। भ्रष्ट उपन्यासों के काल्पनिक जगत् में गगन-विहार करने लगता है। वेश्याओं और नर्तकियों का पेशा सिर्फ भावुकता के बल पर चलता है। लोग आजकल अभिनेत्रियों का गुणगान करते नहीं थकते। घर में उन्हीं के अश्लील अर्द्धनग्न चित्रों को सजाते हैं। ये सब अपनी भावनाओं को भड़काने की कमजोरी के दुष्परिणाम हैं। आप विवेकवान बनें और वासनाजन्य इन भावनाओं को उद्दीप्त न होने दें। कहा है—
द्रुपदादिव मुमुचानः स्विन्नः स्नात्वा मलादिव ।
पूत पवित्रेणेवाज्यं विश्वे शुम्भ्ज्ञन्तु मैनसः ।।
—अथर्ववेद 6।115।3
‘‘याद रखिये, पाप और मल विकारों से शुद्ध रहने वाले आदमी ही इस जीवन में अधिक आनन्द प्राप्त करते हैं। वासना से सम्बन्धित समस्त भावनाएं सर्वनाश करने वाली हैं।’’
सुविज्ञान चिकितुषे जनाय सच्चासच्चवचसी पस्पृधाते ।
तयोर्यत् सत्यं यतरदृजीयस्तदित्सोमोऽवति हन्त्यासत् ।।
—अथर्ववेद 8।4।12
‘‘विवेकवान् बनिये। विवेकवान् पुरुष उसे कहते हैं जो भावुकता में न बह कर सत्य (काम की बात) को ही ग्रहण करता है और असत्य को त्याग देता है। शान्त और सन्तुलित मन से खूब सोचा कीजिये कि क्या उचित है क्या अनुचित!’’
भावुकता से क्रोध और उत्तेजना के दौरे उठते हैं—
अति भावुक आदमी की सहनशक्ति बड़ी कमजोर होती है। कोई तनिक सी कड़वी या विरोधी बात कह दे, जरा-सी मुसीबत पड़ जाय, मामूली-सी कठिनाई आ पड़े तो वह बुरी तरह उत्तेजित हो उठता है। लड़ाई तक की नौबत आ जाती है। उसकी जबान और हाथ-पांव काबू में नहीं रहते। आवेश में उन्मत्त होकर या तो वह अपना अहित कर बैठता है अथवा आस-पास वालों पर मुसीबत ले आता है। भावुक व्यक्तियों की उत्तेजना में आत्महत्या के मामलों के समाचार प्रायः समाचार-पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं। सैकड़ों बार मार-पीट और हाथा-पाई की नौबत आ जाती है। अखबारों से कुछ ताजे समाचार यहां उद्धृत किये जाते हैं। इससे विदित होता है कि अति भावुक लोग कुछ भी अहित कर सकते हैं, क्योंकि उन्हें अपने पर काबू नहीं होता—
अत्यधिक क्रोध से मृत्यु—
मोदी नगर का समाचार है, वहां से चार मील दूर ग्राम भोजपुर के समीप स्थित भट्टे पर ठेकेदार व पथेरे के मध्य लेन-देन पर कुछ झगड़ा हो गया। दोनों ही भावुक प्रकृति के थे। यकायक उत्तेजना से तैश में भर गये। ग्रीष्म की अधिकता तथा अधिक क्रोधावेश के कारण पथेरा मूर्छित हो गया और तत्काल ही घटनास्थल पर उसकी मृत्यु हो गई। पुलिस ने मामला दर्ज कर शव परीक्षण हेतु भेज दिया गया। यदि ये लोग ठण्डे दिल से मामला तय करते तो मृत्यु की नौबत न आती।
कानपुर का समाचार है। शिवली पुलिस क्षेत्र के ग्राम निगोह निवासी एक व्यक्ति को छः माह की कन्या की हत्या करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। बताया जाता है कि नन्हीं बच्ची के लगातार रोने के कारण क्रुद्ध होकर भावुक पिता ने उस बच्ची को उठाकर जोर से पटक दिया, जिसके परिणामस्वरूप वह वहीं मर गयी। जब विवेक हुआ तो उसे बड़ा डर लगा। घबराकर सोनेला स्वयं भी आत्महत्या करने के लिये कुंए में कूदने दौड़ा, किन्तु लोगों ने उसे पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया।
मार-पीट हो गई—
कानपुर का समाचार है। कुम्भ स्नान से पुण्य लाभ होता है या नहीं? इस विवाद के पीछे उन्नाव जिले में बीधापुर स्टेशन पर एक व्यक्ति की हत्या हो गई और दूसरा शख्स घायल हो गया। घटनाक्रम के अनुसार दो यात्री उक्त की चर्चा कर रहे थे। पास ही खड़े तीन-चार यात्रियों ने उसमें हस्तक्षेप करते हुये इन सब कामों को ढोंग की संज्ञा दी। इस पर भावुक आदमियों में विवाद छिड़ गया। एक व्यक्ति मर गया तथा दूसरा घायल हो गया। मृतक व घायल व्यक्ति सरसोल (कानपुर) के तथा आक्रमणकारी उन्नाव के रहने वाले हैं।
हंसते-हंसते मर गये—
शिवहर (मुजफ्फरपुर) इस गांव की एक बारात की महफिल में एक भावुक ग्रामीण इतना प्रसन्न हुआ कि खुशी को न सम्हाल सका। हंसने लगा और इतना हंसा कि आखिर मर गया। बताया जाता है कि वह व्यक्ति शामियाने के एक बांस के सहारे खड़ा होकर नाच देख रहा था। नाच में एक मजाक से प्रभावित होकर वह इतना हंसा कि गिर गया और वहीं उसकी मृत्यु हो गई। इस दुःखद घटना से रंग में भंग हो गया। यदि वह अपनी आनन्द की भावना को कन्ट्रोल कर पाता तो मरने की नौबत न आती।
मनीला का एक समाचार है। बयालीस वर्षीय वन्तुरा कावेलिस फिलपाइन्स के चुनावों में एक शर्त जीत जाने पर खुशी में हंसता-हंसता मर गया। वह अपने परिवार को हंस-हंस कर बता रहा था कि किस प्रकार उसने दस बोरे चावल की एक शर्त जीती थी। तभी उसे सीने में दर्द महसूस हुआ और तुरन्त उसके प्राण-पखेरू उड़ गये।
भावना-प्रधान व्यक्ति अपने पर काबू नहीं कर पाता। इसी से अनेक परेशानियों का शिकार बनता है।
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