गृहस्थ का सन्देह.
एक दिन एक गृहस्थ ने
महात्मा रामानुज से प्रश्न किया कि “महात्मन्! क्या ऐसा कोई मार्ग नहीं है कि यह संसार भी न छोड़ना
पड़े और स्वर्ग
भी पा लूँ।”
रामानुज हँसे और बोले—“हाँ, है ऐसा मार्ग। तुम जो कुछ कमाओ ईमानदारी
से कमाओ। और जो कुछ व्यय करो—सदा
दूसरों की भलाई के लिये करो।”
गृहस्थ को सन्देह हुआ
उसने पूछा—“मगर ऐसे कठिन मार्ग पर कौन चल सकता
है?” रामानुज ने दृढ़
विश्वास के साथ कहा—“जो
नारकीय यातनाओं
से बचना चाहता होगा और जिसे ईश्वरीय प्राप्ति की सच्ची लगन होगी।”
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