तपस्या करने से विद्या नहीं मिलती.
आखिरकार उनकी तपस्या से प्रभावित होकर इंद्र प्रकट हुए। उन्होंने पूछा, वत्स, तुम क्या चाहते हो? यवक्रीत ने उत्तर दिया, मैं वेद शास्त्रों का विद्वान होना चाहता हूं, किंतु अध्ययन में समय बर्बाद नहीं करना चाहता। इंद्र ने कहा, तप की जगह किसी गुरुकुल में अध्ययन करके ही वेदज्ञ बनना संभव है। लेकिन यवक्रीत तैयार नहीं हुए और पुनः कठोर तप करने लगे।
एक दिन यवक्रीत गंगा स्नान के लिए पहुंचे। तट पर उन्होंने देखा कि एक वृद्ध चुपचाप मुट्ठी में रेत भर-भरकर गंगाजी में डाल रहा है। यवक्रीत ने पूछा, बाबा, रेत गंगा में क्यों डाल रहे हो? वृद्ध का जवाब था, लोगों को गंगा पार करने में कष्ट होता है। मैं रेत का पुल बनाना चाहता हूं। यवक्रीत उसकी मूर्खता पर हंसकर बोला, परिश्रम और युक्ति के बिना भी कहीं पुल बनता है? केवल रेत डालने से पुल कैसे बनेगा?
तभी यवक्रीत ने देखा कि वृद्ध की जगह इंद्र खड़े हैं। उन्होंने कहा, तुम भी तो बिना अध्ययन के वेदज्ञ बनना चाहते हो। क्या अध्ययन व परिश्रम के बगैर तुम्हारी इच्छा पूरी होगी? यवक्रीत की आंखें खुल गईं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें