श्रीमद्भागवत महापुराण: षष्ठ स्कन्ध: नवम अध्यायः श्लोक 51-55 का हिन्दी अनुवाद

 (लगातार-सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत पुराण)

श्रीमद्भागवत महापुराण:
षष्ठ स्कन्ध: नवम अध्यायः
श्लोक 51-55 का हिन्दी अनुवाद


देवराज इन्द्र! तुम लोगों का कल्याण हो। अब देर मत करो। ऋषशिरोमणि दधीचि के पास जाओ और उनसे उनका शरीर-जो उपासना, व्रत तथा तपस्या के कारण अत्यत्न दृढ़ हो गया है-माँग लो। दधीचि ऋषि को शुद्ध ब्रह्म का ज्ञान है। अश्विनीकुमारों को घोड़े के सिर से उपदेश करने के कारण उनका एक नाम ‘अश्वशिर[1] भी है। उनकी उपदेश की हुई आत्मविद्या के प्रभाव से ही दोनों अश्विनीकुमार जीवन्मुक्त हो गये। अथर्ववेदी दधीचि ऋषि ने पहले-पहल मेरे स्वरूपभूत अभेद्य नारायण कवच का त्वष्टा को उपदेश किया था। त्वष्टा ने वही विश्वरूप को दिया और विश्वरूप से तुम्हें मिला। दधीचि ऋषि धर्म के परम मर्मज्ञ हैं। वे तुम लोगों को अश्विनीकुमार के माँगने पर, अपने शरीर के अंग अवश्य दे देंगे। इसके बाद विश्वकर्मा के द्वारा उन अंगों से एक श्रेष्ठ आयुध तैयार करा लेना। देवराज! मेरी शक्ति से युक्त होकर तुम उसी शस्त्र के द्वारा वृत्रासुर का सिर काट लोगे। देवताओं! वृत्रासुर के मर जाने पर तुम लोगों को फिर से तेज, अस्त्र-शस्त्र और सम्पत्तियाँ प्राप्त हो जायेंगी। तुम्हारा कल्याण अवश्यम्भावी है; क्योंकि मेरे शरणागतों को कोई सता नहीं सकता।

कोई टिप्पणी नहीं: