त्रिजट मुनि.



त्रिजट मुनि.


त्रिजट मुनि अयोध्या के निवासी थे। इनकी समस्त गायें वृद्धावस्था के कारण मृत्यु को प्राप्त हो चुकी थीं। त्रिजट मुनि के परिवार का भरण-पोषण बड़ी मुश्किलों से हो रहा था। जब त्रिजट को इस बात का पता लगा कि श्रीराम गरीबों को दान दे रहे हैं, तब वह भी उनके पास सहायता प्राप्ति हेतु गये थे। 


श्रीराम ने वनगमन से पूर्व अपने कोष से अपने प्रत्येक सेवक को इतना धन, दान स्वरूप प्रदान किया था  कि चौदह वर्ष तक वह अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके। कोष का बहुत-सा धन वृद्धों व दीन-दुखियों को उदारतापूर्वक दान कर दिया गया।

अयोध्या निवासी गरीब ब्राह्मण त्रिजट की तमाम गायें वृद्धावस्था के कारण मर गई थीं। श्रीराम उस गरीब की समय-समय पर सहायता करते रहते थे।

त्रिजट की पत्नी को पता चला कि श्रीराम वनगमन से पूर्व गरीबों को दान दे रहे हैं तो उसने आग्रह करके अपने पति त्रिजट को श्रीराम के पास भेजा।

त्रिजट ने देखा कि महल में वन यात्रा दान महोत्सव जारी है। त्रिजट को श्रीराम के सामने ले जाया गया।

श्रीराम कृशकाय त्रिजट को देखते ही समझ गए कि उसके पास खाद्यान्न व दूध आदि का  सर्वथा अभाव है। उन्होंने कहा- "विप्र देव! आप अपने हाथ का डंडा जितनी दूर भी फेंक सकेंगे, वहाँ तक की भूमि व गायें आपकी हो जाएंगी।

त्रिजट ने डंडा फेंका। उनका दंड एक हज़ार गायों से युक्त, गोशाला में गिरा, जो कि सरयू नदी के दूसरे पार थी। वे समस्त गायें मुनि त्रिजट की हो गयीं,  वे राम को आशीर्वाद देकर अपने आश्रम चले गये।

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