महाविद्या-भाग-6
त्रिपुर भैरवी , छठी महाविद्या के रूप में अवस्थित हैं। त्रिपुर शब्द का अर्थ हैं, तीनों लोक! स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल तथा भैरवी शब्द विनाश के एक सिद्धांत के रूप में अवस्थित हैं। तात्पर्य हैं तीन लोकों में नष्ट या विध्वंस की जो शक्ति हैं, वही भैरवी हैं। देवी पूर्ण विनाश से सम्बंधित हैं तथा भगवान शिव जिनका सम्बन्ध विध्वंस या विनाश से हैं, देवी त्रिपुर भैरवी उन्हीं का एक अभिन्न रूप मात्र हैं। देवी भैरवी विनाशकारी प्रकृति के साथ, विनाश से सम्बंधित पूर्ण ज्ञानमयी हैं; विध्वंस काल में अपने भयंकर तथा उग्र स्वरूप सहित, शिव की उपस्थिति के साथ संबंधित हैं। देवी! कालरात्रि या काली के रूप समान हैं।
योगिनियों की अधिष्ठात्री देवी हैं, महाविद्या त्रिपुर-भैरवी। देवी की साधना मुख्यतः घोर कर्मों में होती हैं। देवी ने ही उत्तम मधु पान कर महिषासुर का वध किया था। समस्त भुवन देवी से ही प्रकाशित हैं और एक दिन इन्हीं में लय होजायेगा। भगवान् नरसिंह की अभिन्न शक्ति हैं, देवी त्रिपुर भैरवी। देवी गहरे शारीरिक वर्ण से युक्त एवं त्रिनेत्रा हैं। मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती हैं। चार भुजाओं से युक्त देवी भैरवी अपने बाएं हाथों से वर तथा अभय मुद्रा प्रदर्शित करती हैं और दाहिने हाथों में मानव खप्पर तथा खड्ग धारण करती हैं। देवी रुद्राक्ष तथा सर्पों के आभूषण धारण करती हैं, मानव खप्परों की माला देवी अपने गले में धारण करती हैं।
देवी महा त्रिपुर-भैरवी के प्रादुर्भाव से सम्बंधित कथा।
अत्यंत उग्र स्वरूप वाली देवी त्रिपुर-भैरवी ने ही भगवान शिव से सती को अपने पिता के यज्ञ में जाने की अनुमति देने हेतु कहा था। सती के पिता, प्रजापति दक्ष (जो ब्रह्मा जी के पुत्र थे) ने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने तीनों लोकों से समस्त प्राणियों को निमंत्रित किया, किन्तु शिव से द्वेष के कारण आयोजन में आमंत्रित नहीं किया। जब देवी सती ने देखा कि देवगण यज्ञ आयोजन में जा रहे हैं तब उन्होंने शिव से अपने पिता के घर जाने की अनुमति मांगी। भगवान शिव, दक्ष के व्यवहार से भली प्रकार परिचित थे। उन्होंने सती को अपने पिता के घर जाने की अनुमति न देते हुए, नाना प्रकार से उन्हें समझने की चेष्टा की परन्तु देवी सती नहीं मानी और अत्यंत क्रोधित हो गई। देवी के क्रोध से दस महा शक्तियां प्रकट हुई, जो देवी को एक घेरे में लिए खड़ी हुई थीं। उनमें से एक घोर काले वर्ण की देवी भी थीं, जिन्होंने अपने तथा अन्य उपस्थित शक्तिओं के प्रभाव एवं गुणो का भगवान शिव को परिचय दिया और उनसे निश्चिंत रहने हेतु प्रार्थना की, वह देवी काल स्वरूपीणी भैरवी ही थीं। परिणामस्वरूप, भगवान शिव ने अंततः सती कोपिता के यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी।
देवी विनाश और विध्वंस के रूप में ही अपने पिता के यज्ञ अनुष्ठान में गई, जहाँ पति की निंदा सुनकर देवी ने अपने आप को यज्ञ में भस्म कर , यज्ञ के विनाश का कारण बनी।
संक्षेप में देवी त्रिपुर-भैरवी से सम्बंधित मुख्य तथ्य।
मुख्य नाम : त्रिपुर-भैरवी।
अन्य नाम : चैतन्य भैरवी, नित्य भैरवी, भद्र भैरवी, श्मशान भैरवी, सकल सिद्धि भैरवी, संपत-प्रदा भैरवी, कामेश्वरी भैरवी इत्यादि।
भैरव : दक्षिणामूर्ति या वटुक भैरव।
भगवान के २४ अवतारों से सम्बद्ध : भगवान बलराम अवतार।
कुल : श्री कुल।
दिशा : पूर्व।
स्वभाव : सौम्य उग्र, तामसी गुण सम्पन्न।
कार्य : विध्वंस या पञ्च तत्वों में विलीन करने की शक्ति।
शारीरिक वर्ण : सौम्य स्वभाव में लाल, हजारों उगते हुए सूर्य के समान तथा उग्र रूप में घोर काले वर्ण युक्त।
क्रमश:
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें