महाविद्या-भाग-10
महाविद्या कमला या कमलात्मिका, महाविद्याओं में दसवें स्थान पर हैं। देवी का सम्बन्ध सम्पन्नता, खुशहाल-जीवन, समृद्धि, सौभाग्य और वंश विस्तार जैसे समस्त सकारात्मक तथ्यों से हैं। देवी पूर्ण सत्व गुण सम्पन्न हैं। स्वच्छता तथा पवित्रता, देवी को अत्यंत प्रिय हैं और देवी ऐसे स्थानों में ही वास करती हैं। प्रकाश से देवी कमला का घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। देवी उन्हीं स्थानों को अपना निवास स्थान बनती हैं, जहां अँधेरा न हो; इसके विपरीत देवी की बहन अलक्ष्मी, ज्येष्ठा, निऋति जो निर्धनता, दुर्भाग्य से सम्बंधित हैं, अंधेरे एवं अपवित्र स्थानों को ही अपना निवास स्थान बनती हैं।
कमल के पुष्प के नाम वाली देवी कमला, कमल या पद्म पुष्प से सम्बंधित हैं। कमल पुष्प दिव्यता का प्रतीक हैं, कमल कीचड़ तथा मैले स्थानों पर उगता हैं, परन्तु कमल की दिव्यता मैल से कभी लिप्त नहीं होती हैं। कमल अपने आप में सर्वदा दिव्य, पवित्र तथा उत्तम रहता हैं। देवी कमला के स्थिर निवास हेतु अन्तःकरण की पवित्रता तथा स्थान की स्वच्छता अत्यंत आवश्यक हैं। देवी की आराधना तीनों लोकों में दानव, दैत्य, देवता तथा मनुष्य सभी द्वारा की जाती हैं, क्योंकि सभी सुख तथा समृद्धि प्राप्त करना चाहते हैं। देवी आदि काल से ही त्रि-भुवन के समस्त प्राणिओं द्वारा पूजित हैं। देवी की कृपा के बिना, निर्धनता, दुर्भाग्य, रोग इत्यादि मनुष्य से सदा लगे रहते हैं। देवी ही समस्त प्रकार के सुख, समृद्धि, वैभव इत्यादि सभी को प्रदान करती हैं।
स्वरूप से देवी कमला अत्यंत ही दिव्य, मनोहर एवं सुन्दर हैं। इनकी प्राप्ति समुद्र मंथन के समय हुई थीं तथा इन्होंने भगवान विष्णु को पति रूप में वरण किया था। देवी कमला! तांत्रिक लक्ष्मी के नाम से भी जानी जाती हैं। , श्रीविद्या त्रिपुरसुन्दरी की आराधना कर देवी, श्री पद से युक्त हुई तथा महा-लक्ष्मी नाम से विख्यात भी। देवी की अंग-कांति स्वर्णिम आभा लिए हुए हैं, तीन नेत्रों से युक्त हैं एवं सुन्दर रेशमी साड़ी तथा नाना अमूल्य रत्नों से युक्त अलंकारों से सुशोभित हैं। देवी कमला चार भुजाओं से युक्त हैं, अपनी ऊपर की दोनों भुजाओं में पद्म पुष्प धारण कर रखा हैं तथा शेष दोनों भुजाओं में वर तथा अभय मुद्रा प्रदर्शित कर रहीं हैं। देवी को कमल का सिंहासन अति प्रिय हैं तथा वे सर्वदा कमल पुष्प से ही घिरी रहती हैं। हाथियों का समूह देवी का अमृत से भरे स्वर्ण कलश से अभिषेक करते रहते हैं।
हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म में कमल पुष्प को पवित्र और महत्त्वपूर्ण माना जाता हैं। बहुत से देवी देवताओं की साधना, आराधना में कमल पुष्प आवश्यक हैं, वासी भी सभी देवताओं को कमल पुष्प समर्पित कर सकते हैं।
प्रादुर्भाव
श्रीमद भागवत के आठवें स्कन्द में देवी कमला के उद्भव की कथा हैं। देवी कमला का प्रादुर्भाव समुद्र मंथन से हुआ। एक बार देवताओं तथा दानवों ने समुद्र का मंथन किया, जिनमें अमृत प्राप्त करना मुख्य था। दुर्वासा मुनि के श्राप के कारण सभी देवता, लक्ष्मी / श्री हीन हो गए थे, यहाँ तक की भगवान विष्णु को भी लक्ष्मीजी ने त्याग कर दिया था। पुनः श्री सम्पन्न होने हेतु या नाना प्रकार के रत्नों को प्राप्त कर समृद्धि हेतु, देवताओं तथा दैत्यों ने समुद्र का मंथन किया था। समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में देवी 'कमला' भी थी। जिनमें, देवी कमला भगवान विष्णु को प्राप्त हुई। देवी, भगवान विष्णु से विवाह के पश्चात, लक्ष्मी नाम से विख्यात हुई। 'श्रीविद्या महा त्रिपुरसुंदरी' की आराधना कर श्री की उपाधि प्राप्त की और महाविद्याओं में स्थान मिला।
देवी कमला से सम्बंधित अन्य तथ्य।
भगवान विष्णु से विवाह होने के कारण देवी का सम्बन्ध सत्व-गुण से हैं तथा वे वैष्णवी शक्ति की अधिष्ठात्री हैं। भगवान विष्णु,, देवी कमला के भैरव हैं। शासन, राजपाट, मूल्यवान धातु तथा रत्न जैसे पुखराज, पन्ना, हीरा इत्यादि, सौंदर्य से सम्बंधित सामग्री, जेवरात इत्यादि देवी से सम्बंधित हैं, और देवी इन भोग-विलास की वस्तुओं की प्रदाता हैं। देवी की उपस्थिति तीनों लोकों को सुखमय तथा पवित्र बनाती हैं अन्यथा इनकी बहन अलक्ष्मी या निऋति निर्धनता तथा अभाव के स्वरूप में वास करती हैं। व्यापारी वर्ग, शासन से सम्बंधित कार्य करने वाले देवी की विशेष तौर पर आराधना, पूजा इत्यादि करते हैं। देवी हिन्दू धर्म के अंतर्गत सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं तथा समस्त वर्गों द्वारा पूजिता हैं, तंत्र के अंतर्गत देवी की पूजा तांत्रिक-लक्ष्मी रूप से की जाती हैं; तंत्रों के अनुसार देवी समृद्धि, सौभाग्य और धन प्रदाता हैं।
देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध देवराज इन्द्र तथा कुबेर से हैं, इन्द्र देवताओं तथा स्वर्ग के अधिपति हैं तथा कुबेर देवताओं के कोषागार अध्यक्ष के पद पर आसीन हैं। देवी लक्ष्मी ही इंद्र तथा कुबेर को वैभव, राजसी सत्ता प्रदान करती हैं।
संक्षेप में देवी कमला से सम्बंधित मुख्य तथ्य।
मुख्य नाम : कमला।
अन्य नाम : लक्ष्मी, कमलात्मिका।
भैरव : श्री विष्णु।
भगवान के २४ अवतारों से सम्बद्ध : मत्स्य अवतार।
तिथि : कोजागरी पूर्णिमा, अश्विन मास पूर्णिमा।
कुल : श्री कुल।
दिशा : उत्तर-पूर्व।
स्वभाव : सौम्य स्वभाव।
कार्य : धन, सुख, समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी।
शारीरिक वर्ण : सूर्य की कांति के समान।
इति (समाप्त)
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